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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 4, Issue 1, Part C (2018)

प्राचीन भारतीय इतिहास में पूर्व मध्यकाल के प्रथम चरण में नारियों का सम्पत्तिक अधिकार का अध्ययन

प्राचीन भारतीय इतिहास में पूर्व मध्यकाल के प्रथम चरण में नारियों का सम्पत्तिक अधिकार का अध्ययन

Author(s)
डाॅ. जितेन्द्र मिश्र
Abstract
किसी भी समाज अथवा राष्ट्र के सर्वतोमुखी अभ्युदय में स्त्री और पुरुष का समान महत्व होता है। पुरुष यदि घर से बाहर के कार्यों की सुचारुता एवं उन्नति का कर्तव्य वहन करता है, तो स्त्री सेवा, सुश्रुषा, स्नेह आदि के सम्बलपूर्वक घर के विभिन्न कष्टसाध्य दायित्वों का निर्वाह करती हुई अपनी चरम उपयोगिता को सार्थक रूप में सिद्ध करती है। स्त्री के बिना पुरुष अपूर्ण है। जीवनरथ के दोनों चक्रों (स्त्री एवं पुरुष) के एकसमान चलने पर ही जीवन आनन्दमय बनता है। स्त्री के विविध रूप हैं - पुत्री, भगिनी, पत्नी, माता आदि। इस सभी रूपों में पत्नी का रूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि पत्नी पद के उपरान्त ही स्त्री माता पद की अधिकारिणी होती है।
Pages: 160-162  |  982 Views  116 Downloads
How to cite this article:
डाॅ. जितेन्द्र मिश्र. प्राचीन भारतीय इतिहास में पूर्व मध्यकाल के प्रथम चरण में नारियों का सम्पत्तिक अधिकार का अध्ययन. Int J Appl Res 2018;4(1):160-162.
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