Vol. 5, Issue 3, Part D (2019)
मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में नारी संवेदना और यथारà¥à¤¥
मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में नारी संवेदना और यथारà¥à¤¥
Author(s)
संजय कà¥à¤®à¤¾à¤°
Abstract
समकालीन हिनà¥à¤¦à¥€ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ का नाम अगà¥à¤°à¤—णà¥à¤¯ रहा है। मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ संपनà¥à¤¨ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤•à¤¾à¤° रही हैं। इनके उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ अपने सरोकारों में नारी संवेदना और यथारà¥à¤¥ की दिशा में महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ आयाम खोले हैं। लेखिका ने नारी चरितà¥à¤° के अंतर बाहà¥à¤¯ रूप को मानवीय जीवन दृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आलोक में मानवोचित यथारà¥à¤¥ के धरातल पर परखा है। मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ ने नारी की दà¥à¤ƒà¤–-दरà¥à¤¦, संताप, पीड़ा, संवेदना, रूॠवà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की दासà¥à¤¤à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं à¤à¤µà¤‚ शोषण की शिकार तथा उसकी जकड़न में कसमसाती हà¥à¤ˆ संवेदनशील नारी का यथारà¥à¤¥ अंकन अपने पà¥à¤°à¤®à¥à¤– उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में की है। à¤à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की दासतां à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ रूॠपरमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं, शोषण से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ का रासà¥à¤¤à¤¾ तलाशती मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ ‘इदनà¥à¤¨à¤®à¤®à¥’ की मंदा, कà¥à¤¸à¥à¤®à¤¾, पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¾ तथा ‘बेतवा बहती रही’ की उरà¥à¤µà¤¶à¥€ और ‘विजन’ की डाॅ॰ नेहा तथा डाॅ॰ आà¤à¤¾ आदि नजर आती है। इन महिलाओं का पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ रूढि परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤“ं à¤à¤µà¤‚ शारीरिक मानसिक शोषण तथा-कà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के खिलाफ संघरà¥à¤· की गाथा को मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ ने अपने उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में बेबाकी से अंकन किया है। मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ की नारी पातà¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ से चली आ रही आदरà¥à¤¶ पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ ‘पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के अधीन रहना’ को उखाड़ फेंकती है। अपने जीवन में आये कटीलेदार रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को पार करके आगे बà¥à¤¤à¥€ हà¥à¤ˆ दिखाई देती है। इतना ही नहीं मधà¥à¤¯à¤¯à¥à¤—ीन संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की खोज से बाहर आकर नठसिरे से नठतरीके से अपने और अपने आस-पास की परिवेश को समà¤à¤¨à¤¾ चाहती है। सदियों से लदी पà¥à¤°à¥à¤· पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को विरोध कर अपने वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ के लिठलड़ाई लड़ती हà¥à¤ˆ दिखाती है। परंपरागत संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और साहितà¥à¤¯ में वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ विचारधारा से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ परिवेशजन परिवरà¥à¤¤à¤¨ को रेखांकित कर कथा साहितà¥à¤¯ में नारी जीवन की अनà¥à¤à¥‚ति और कलà¥à¤ªà¤¿à¤¤ पकà¥à¤·à¥‹à¤‚ का कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के कारण मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ जी के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में नारी की संवेदना और यथारà¥à¤¥ दो मूलà¤à¥‚त पकà¥à¤· बनकर उà¤à¤°à¥‡ हैं।
How to cite this article:
संजय कà¥à¤®à¤¾à¤°. मैतà¥à¤°à¥‡à¤¯à¥€ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾ के उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ में नारी संवेदना और यथारà¥à¤¥. Int J Appl Res 2019;5(3):288-292.