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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 5, Issue 6, Part D (2019)

प्रेमचन्द के कथा-साहित्य में नारी अस्मिता की समीक्षा

प्रेमचन्द के कथा-साहित्य में नारी अस्मिता की समीक्षा

Author(s)
चन्दीर पासवान
Abstract
प्रेमचन्द अपने उपन्यास और कहानियों में नारियों के प्रति दयावान दिख रहे हैं और दिखे भी क्यों न पुरुषों की भोगवादी प्रवृत्ति के कारण नारियाँ हमेशा से शोषण की शिकार होती रही हैं। जो लोग जितने बड़े महान कहे जाते हैं वे नारियों का उतना बड़ा शोषक है- जैसे राजा-महाराजा सब नारियों के रूप-लावन्य के आधार पर आशक्त होकर शोषण करता है जो नारी जितना अधिक रूप, गुण, शील, स्वभाव से बड़ी मानी जाती थी, उसका उतना ही ज्यादा शोषण किया जाता था।ऐसे में नारियों की अस्मिता खतरे में पड़ना आम बात है, समाज की सबसे बड़ी खामिया दहेज-रूपी कोढ़ को भोगना है। जिसका शिकार ‘सेवासदन’ की नायिका सुमन को होना पड़ता है। प्रेमचन्द ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि जिस चीज को समाज प्रतिष्ठा समझता है, बचाने के लिए सब कुछ दाव पर लगाकर भी अंततः दिखार हो ही जाता है। इसी के परिणामस्वरूप सुमन अपने नापसंद पति को छोड़कर वेश्यावृति अपना लेती है। निर्मला अपने पति के द्वारा शक का शिकार होती है और उनका घर उत्थान के बजाय पत्तनोन्मुख हो जाता है। ‘गोदान’ में भोला की बेटी को गोबर के साथ भागकर विवाह करने का कारण दहेज ही है और दूसरी बात समाज का जरूरत से ज्यादा प्रतिबंध लगाना है। प्रेमचन्द नारी को इस मानसिकता से मुक्त करना चाहते है। जिससे नारी खुली हवा में साँस ले सके। प्रेमचन्द यह भी चाहते हैं कि नारी को जीवन का जो भी क्षेत्र हो जैसे- शिक्षा, राजनीतिक, आर्थिक, कानूनी, धार्मिक सभी प्रकार की स्वतंत्रता मिलना चाहिए, तभी राष्ट्र का उद्धार सम्भव है। नारी की अस्मिता की रक्षा भी प्रेमचन्द के साहित्य काएक बहुत बड़ा उद्देश्य है।
Pages: 445-447  |  700 Views  169 Downloads
How to cite this article:
चन्दीर पासवान. प्रेमचन्द के कथा-साहित्य में नारी अस्मिता की समीक्षा. Int J Appl Res 2019;5(6):445-447.
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