Vol. 1, Issue 2, Part A (2015)
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Author(s)
Dr. Nandini Samadhiya
Abstract
क) बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤° तथा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• का महतà¥à¤µ:-अविनाशी वह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ चराचर संसार को जागà¥à¤°à¤¤ और सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निरनà¥à¤¤à¤° निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ करता है और नषà¥à¤Ÿ करता है। यहाठयह शंका उठती है कि यहाठतो इस शासà¥à¤¤à¥à¤° को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ कहा है कि फिर इसको मनà¥à¤•à¥ƒà¤¤ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कहा जाता है ? इस विषय में मेधातिथि का समाधान है कि शासà¥à¤¤à¥à¤° शबà¥à¤¦ से यहाठविधि पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥‡à¤§ रूप शासà¥à¤¤à¥à¤° के अरà¥à¤¥ का गà¥à¤°à¤¹à¤£ करना चाहिà¤à¥¤ उस अरà¥à¤¥ को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ ने मनॠको गà¥à¤°à¤¹à¤£ कराया था और मनॠने उस अरà¥à¤¥ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤• गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ की रचना की। कà¥à¤› लोगों का कहना है कि जिस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° वेद के अपौरà¥à¤·à¥‡à¤¯ होने पर à¤à¥€ काठक आदि संहिताओं का वà¥à¤¯à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ होता है। उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤°à¤šà¤¿à¤¤ होने पर à¤à¥€ सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® मनॠके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मरीचि आदि के लिठपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ किये जाने के कारण इसे मनà¥à¤•à¥ƒà¤¤ माना जाता है। किनà¥à¤¤à¥ कà¥à¤²à¥à¤²à¥‚कà¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ का कहना है कि वसà¥à¤¤à¥à¤¤à¤ƒ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ ने à¤à¤• लाख शà¥à¤²à¥‹à¤• पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° बनाकर मनॠको पढ़ाया था और मनॠने उसका संकà¥à¤·à¥‡à¤ªà¥€à¤•à¤°à¤£ करके शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ किया। अतः बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤•à¥ƒà¤¤ कहने पर à¤à¥€ मनà¥à¤µà¤¿à¤°à¤šà¤¿à¤¤ मानने में कोई विरोध नहीं है। नारद ने à¤à¥€ इस शासà¥à¤¤à¥à¤° के à¤à¤• लाख शà¥à¤²à¥‹à¤• पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ होने का समरà¥à¤¥à¤¨ किया है-‘‘शतसाहसà¥à¤°à¥‹à¤½à¤¯à¤‚ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¤ƒà¥¤à¥¤ अब यह à¤à¥ƒà¤—ॠइस समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ शासà¥à¤¤à¥à¤° को तà¥à¤®à¤•à¥‹ सà¥à¤¨à¤¾à¤µà¥‡à¤‚गे। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस मà¥à¤¨à¤¿ ने यह सब मà¥à¤à¤¸à¥‡ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ किया है। खà¥3, इसके बाद उन मनॠजी के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° कहे जाने पर महरà¥à¤·à¤¿ à¤à¥ƒà¤—ॠने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर उन सà¤à¥€ ऋषियों से कहा -सà¥à¤µà¤¯à¤‚à¤à¥‚ (बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤ªà¥à¤¤à¥à¤°)मनॠके वंश में छः अनà¥à¤¯ मनॠहà¥à¤à¥¤ महानॠपराकà¥à¤°à¤®à¥€ उन महातà¥à¤®à¤¾à¤“ं ने अपनी-अपनी पà¥à¤°à¤œà¤¾ की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की। सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‹à¤šà¤¿à¤·, उतà¥à¤¤à¤®, तामस, रैवत, चाकà¥à¤·à¥à¤ª और महानॠतेजसà¥à¤µà¥€ वैवसà¥à¤µà¤¤ (ये छः मनà¥à¤“ं के नाम हैं)। मनॠसे लेकर अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ पराकà¥à¤°à¤®à¥€ सातों मनà¥à¤“ं ने अपने मनà¥à¤µà¤¨à¥à¤¤à¤°à¤•à¤¾à¤² में चराचर समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ संसार की रचना करके रकà¥à¤·à¤¾ की। अठारह निमेष की à¤à¤• काषà¥à¤ ा, तीस काषà¥à¤ ा की à¤à¤• कला, तीस कला का à¤à¤• मà¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ और उतने ही मà¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ का à¤à¤• अहोरातà¥à¤° होता है। अब यहाठसे मनà¥à¤µà¤¨à¥à¤¤à¤° सृषà¥à¤Ÿà¤¿ और पà¥à¤°à¤²à¤¯ आदि के काल के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के लिठकाल का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ बताया गया है। सूरà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯ और देवताओं में दिन-रात का विà¤à¤¾à¤œà¤¨ करता है। रातà¥à¤°à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के सोने के लिठहै और दिन कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के करने के लिठहै। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¤• माह पितरों के लिठà¤à¤• अहोरातà¥à¤° (दिन रात) होता है। दोनों पकà¥à¤·à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• à¤à¤¾à¤— कृषà¥à¤£à¤ªà¤•à¥à¤· कारà¥à¤¯ करके के लिठदिन और शà¥à¤•à¥à¤²à¤ªà¤•à¥à¤· सोने के लिठरातà¥à¤°à¤¿ होती है। à¤à¤•à¤µà¤°à¥à¤· देवताओं का अहोरातà¥à¤° होता है। वरà¥à¤· के दो हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ में ठà¤à¤• à¤à¤¾à¤— उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤¯à¤£ दिन तथा दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾à¤¯à¤£ रात होती है। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी के अहोरातà¥à¤° का और यà¥à¤—ों का जो पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है वह कà¥à¤°à¤® से à¤à¤•-à¤à¤• करके समà¤à¥‹à¥¤ यहाठपर पितरों और देवताओं का कालपà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ करके बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी का कालपà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ पृथकॠवरà¥à¤£à¤¿à¤¤ किया जा रहा है वह उनके जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का पà¥à¤£à¥à¤¯à¤«à¤² जानने के लिठहै। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनके जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से पà¥à¤£à¥à¤¯ होता है। चार हजार वरà¥à¤· का à¤à¤• कृत (सत) यà¥à¤— होता है। उतने ही सैकड़े (अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ 400 वरà¥à¤·) की à¤à¤• संधà¥à¤¯à¤¾ होती है और उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° का (अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ 400 वरà¥à¤· का) ही à¤à¤• संधà¥à¤¯à¤¾à¤‚श होता है।
How to cite this article:
Dr. Nandini Samadhiya. euqLe`fr esa czgkpj rFkk czgkyksd dk egRo. Int J Appl Res 2015;1(2):33-34.