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International Journal of Applied Research
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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 1, Issue 2, Part D (2015)

चित्रों का मूलाधार:- लय

चित्रों का मूलाधार:- लय

Author(s)
डाॅ. अरविन्द मैन्दोला
Abstract
‘‘विष्णुधर्मोत्तरम्‘‘ और ‘‘शिल्परत्नम्‘‘ में भारतीय सौन्दर्यशास्त्र और उससे जुड़ी कलाओं के सन्दर्भ में चित्रकला का वर्गीकरण, रागात्मक यर्थाथवादी श्रेणी में हुआ है विष्णुधर्मोत्तरम् पुराण में कहा गया है कि, नृत्य कला के आरम्भिक ज्ञान के बिना चित्रों में मनस्थिति की अभिव्यक्ति संभव नही है। चित्र सृजन करते समय रूप, आकार, भाव, एवं वर्ण-योजना का सौन्दर्यबोध लय की ही अनुभूति के समरूप होना आवश्यक है। चित्रकला के सजृन में नृत्य की मुद्रायें एवं भाव भंगीमाओं की गति को मूलाधार माना गया है। भारतीय सन्दर्भ में माध्यम के स्तर पर भले ही अन्तर स्थूल होता है परन्तु चित्र, मूत्र्ति एवं नृत्य के ये संसार लय परम्परा से जुड़े होते है। भारतीय कला के सन्दर्भों का उत्स, शिव को माना गया है। शिव का तांडव, नृत्य भारतीय कला एवं धर्म का शाश्वत् सन्दर्भ है। इसके अनेक अभिप्रायः व रूप कलाओं के विविध विधाओं में मिलते है। जो भारतीय कला के उच्चतम् प्रतिमानों को उजागर करती है।।
Pages: 257-258  |  552 Views  55 Downloads
How to cite this article:
डाॅ. अरविन्द मैन्दोला. चित्रों का मूलाधार:- लय. Int J Appl Res 2015;1(2):257-258.
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