Vol. 1, Issue 2, Part D (2015)
आचारà¥à¤¯ विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ कविराज और साहितà¥à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤ªà¤£
आचारà¥à¤¯ विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ कविराज और साहितà¥à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤ªà¤£
Author(s)
डॉ. अशोक कà¥à¤®à¤¾à¤° दà¥à¤¬à¥‡
Abstractसाहितà¥à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤ªà¤£à¤•à¤¾à¤° अलंकारिक चकà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ महापातà¥à¤° आचारà¥à¤¯ विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ कविराज अपूरà¥à¤µ विदà¥à¤¯à¤¾ विà¤à¥‚षित वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ थे। आप तà¥à¤°à¤¿à¤•à¤²à¤¿à¤‚ग गजपति सामà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤¯ के सानà¥à¤§à¤¿à¤µà¤¿à¤—à¥à¤°à¤¹à¤¿à¤• थे। आप में अपूरà¥à¤µ कारयितà¥à¤°à¥€ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¾à¤µà¤¯à¤¿à¤¤à¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ थी। साथ ही राजà¥à¤¯à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤¿à¤¤ जीवनशैली के कारण जीवन में सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ का à¤à¤°à¤ªà¥‚र अवसर आपको उपलबà¥à¤§ हो सका। आपको साहितà¥à¤¯-समà¥à¤¦à¥à¤° का करà¥à¤£à¤§à¤¾à¤° कहा गया है। धà¥à¤µà¤¨à¤¿ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨ परमाचारà¥à¤¯ परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¨ की पंकà¥à¤¤à¤¿ में आपका सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¥à¤® है। आप अषà¥à¤Ÿà¤¾à¤¦à¤¶ à¤à¤¾à¤·à¤¾ के जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ रहे हैं। फलतः आप दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सूतà¥à¤° ‘साहितà¥à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤ªà¤£’ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤à¥à¤¯ समाज के लिठअनिवारà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ ततà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤• महागà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ है।
पहली बार आचारà¥à¤¯ विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ कविराज ने संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ साहितà¥à¤¯ के मूल पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¥à¤¯ का उलà¥à¤²à¥‡à¤– किया। आपके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤à¥à¤¯ का मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ मनà¥à¤·à¥à¤¯ हेतॠपà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ और निवृतà¥à¤¤à¤¿ मारà¥à¤— को पहचानना है। साहितà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯ के लिठकेवल आननà¥à¤¦à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤• माधà¥à¤¯à¤® मातà¥à¤° नहीं है। साहितà¥à¤¯ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपना चरितà¥à¤° और परम पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ दरà¥à¤ªà¤£ की तरह देख सकता है। अतः साहितà¥à¤¯ का मà¥à¤–à¥à¤¯ कारà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ और निवृतà¥à¤¤à¤¿ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प को दरà¥à¤ªà¤£à¤µà¤¿à¤¦à¥ उदà¥à¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ करना है। हो सकता है अनेक विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥ à¤à¤µà¤‚ मौलिकगà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¤•à¤¾à¤° सातà¥à¤¯à¤¿ के इस पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ से सहमत न हों, परनà¥à¤¤à¥ आचारà¥à¤¯à¤µà¤¿à¤¶à¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ कविराज का यह वकà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ वैदिक परकà¥à¤ªà¤°à¤¾ के अनà¥à¤°à¥‚प है। वैदिक परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जीवन चतà¥à¤µà¤°à¥à¤—फलपà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हेतॠविधाता दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उपलबà¥à¤§ कराया गया वरदान है। शासà¥à¤¤à¥à¤° का कारà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ और निवृतà¥à¤¤à¤¿ को बतलाना है। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ साहितà¥à¤¯ इससे बà¤à¤§à¤¾ है। अतः संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ साहितà¥à¤¯ पर à¤à¥€ यह सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ लागू होता है-
पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿à¤°à¥à¤µà¤¾ निवृतà¥à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤µà¤¾ नितà¥à¤¯à¥‡à¤¨ कृतकेन वा।
पà¥à¤‚सां येनोपदिशà¥à¤¯à¥‡à¤¤ तचà¥à¤›à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤à¤¿ कथà¥à¤¯à¤¤à¥‡à¥¤à¥¤
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डॉ. अशोक कà¥à¤®à¤¾à¤° दà¥à¤¬à¥‡. आचारà¥à¤¯ विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ कविराज और साहितà¥à¤¯à¤¦à¤°à¥à¤ªà¤£. Int J Appl Res 2015;1(2):281-285.