Vol. 2, Issue 1, Part B (2016)
रहसà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ और कबीर
रहसà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ और कबीर
Author(s)
गà¥à¤‚जन कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€
Abstract
कबीर के रहसà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ को समà¤à¤¨à¥‡ के लिठसरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® रहसà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦, अनंधà¥à¤¦, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨-योग, उलटबांसी के मूल में निहित जो मूल आषय है उसे समà¤à¤¨à¥‡ की जरूरत है। कबीर में जो रहसà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ है, उसका कारण तन को देवालय बनाकर उसी में अपने ईषà¥à¤µà¤° के साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ है। इस रहसà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के अनेक पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¤¾à¤°à¥à¤¥ है। कबीर का रहसà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ बहà¥à¤¤ हद तक आज à¤à¥€ रहसà¥à¤¯ ही है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का असली धरà¥à¤® इस मायालोक से मà¥à¤•à¥à¤¤ होने में है, इस संसार रूपी नैहर को छोड़कर बाबà¥à¤² के घर जाने में है। कबीर की यह घोषणा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ रहसà¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ साधना का अनà¥à¤—ामी बनती पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती है।
How to cite this article:
गà¥à¤‚जन कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€. रहसà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ और कबीर. Int J Appl Res 2016;2(1):126-127.