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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 2, Issue 1, Part L (2016)

प्राचीन राजस्थान में भक्ति का स्वरूप एवं विकास : एक ऐतिहासिक विश्लेषण

प्राचीन राजस्थान में भक्ति का स्वरूप एवं विकास : एक ऐतिहासिक विश्लेषण

Author(s)
डाॅ० मनोज कुमार
Abstract
भारतीयों का जीवन प्राचीन काल से ही धर्मगत उत्कण्ठा से अनुप्राणित रहा है जिसमें नैतिक मूल्यों, आचारगत अभिव्यक्तियों तथा जगन्नियता के प्रति समर्पण की भावना का सन्निवेश था। भारतीय जनमानस में भक्ति-भावना का उदय आदिकाल में ही हो चुका था। अनेक सम्प्रदाय प्रवर्तक, तत्ववेत्ताओं, सन्तों, महात्माओं एवं कवियों ने भक्ति की विभिन्न परिभाषायें एवं व्याख्यायें की हैं। उन सभी का एक ही अन्तिम उद्देश्य या निष्कर्ष रहा है - भगवान के प्रति भक्त या उपासकी की आत्यन्तिको भावना। भगवान में हेतुरहित, निष्काम, निष्ठायुक्त, अनवरत प्रेम ही भक्ति है। भगवान के प्रति भक्त की यह आत्यन्तिकी भावना या सेवावृत्ति मानव सृष्टि के आदिकाल से ही दर्शित होती है। मानव मन में भक्तिभाव का उदय सनातन, प्राकृत एवं स्वाभाविक प्रतीत होता है। विश्वास, पूजा और प्रीति भक्ति भाव के मूलाधार हैं। उसमें तर्क को, विश्लेषणात्मक बुद्धि को कोई स्थान नहीं दिया गया है। इस रूप में भक्ति का अस्तित्व सर्वमांगलिक एवं सार्वभौमिक है।
Pages: 878-882  |  573 Views  108 Downloads
How to cite this article:
डाॅ० मनोज कुमार. प्राचीन राजस्थान में भक्ति का स्वरूप एवं विकास : एक ऐतिहासिक विश्लेषण. Int J Appl Res 2016;2(1):878-882.
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