Vol. 2, Issue 1, Part L (2016)
नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चितà¥à¤°à¤•à¤²à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प
नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चितà¥à¤°à¤•à¤²à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प
Author(s)
डाॅ. यà¥à¤—लकिशोर शरà¥à¤®à¤¾
Abstract
शोध पतà¥à¤° का सारांष इस रूप में उà¤à¤° कर आता है कि नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चितà¥à¤°à¤•à¤²à¤¾ को किसी षैलीगत पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥‚प में निबदà¥à¤µ नहीं कर यदि उसका वृहद रूप à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ कला के उस रूप में आंकलन किया जाये जिसमें à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ कला का मूल रूप औचितà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ रहा है तो नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चितà¥à¤°à¤•à¤²à¤¾ अपने आपमें वैयकà¥à¤¤à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ विषिषà¥à¤Ÿ रूप में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ होती है।
How to cite this article:
डाॅ. यà¥à¤—लकिशोर शरà¥à¤®à¤¾. नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चितà¥à¤°à¤•à¤²à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प. Int J Appl Res 2016;2(1):889-890.