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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 2, Issue 12, Part A (2016)

जंगल के दावेदार’ का नायक बीरसा मुण्डा

जंगल के दावेदार’ का नायक बीरसा मुण्डा

Author(s)
डॉ. उत्तम पटेल
Abstract
आदिवासी जीवन पर रचे गए भारतीय उपन्यासों में ‘बलि-विभावरी’-शिरसकर (मराठी), ‘कुडियर कुसु’-कारंत (कन्नड़), ‘अमृत संतान’-गोपीनाथ महंती (उड़िया), ‘मधुओर’-शिवशंकर पिल्लै (मलयालम), ‘कब तक पुकारूँ’-रांगेय राघव, ‘मैला आँचल’-रेणु,, ‘सिद्धू कान्हू, ‘चोट्टी मुंडा का तीर’, ‘हजार चैरासी की माँ’- महाश्वेता देवी (बंगाली), ‘अरण्यवह्नि’-ताराशंकर बंधोपाध्याय (बंगाली), ‘आरण्यक’-विभूति भूषण बंधोपाध्याय (बंगाली), ‘गगन घटा घहरानी’ (मनमोहन पाठक), ‘सहराना’ (पुन्नी सिंह), ‘अल्मा कबूतरी’ (मैत्रेयी पुष्पा), ‘जंगल जहाँ शुरू होता है’ (संजीव) आदि महत्वपूर्ण हैं। इनमें बंगाली लेखिका महाश्वेता देवी द्वारा रचित उपन्यास ‘जंगल के दावेदार’ एक माइल स्टोन मील का पत्थर सिद्ध हुआ है। इसमें चित्रित संथाल आदिवासी नेता बीरसा मुंडा ने अंग्रेजों के सामने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया था। जिससे भयभीत हो अंग्रेजों ने इसे जहर देकर मार डाला था। बीरसा मर कर भी मुंडा में चेतना और अधिकार-बोध भरकर उन्हें अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करना सिखा जाता है। इस बीरसा के प्रभाव से गुंडाधुर जैसे नेता हुए। तो बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश के पूर्वी-दक्षिण क्षेत्र के आदिवासी उसे अपने नायक के रूप में देखते हैं।
Pages: 45-48  |  3843 Views  569 Downloads
How to cite this article:
डॉ. उत्तम पटेल. जंगल के दावेदार’ का नायक बीरसा मुण्डा. Int J Appl Res 2016;2(12):45-48.
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