Vol. 2, Issue 12, Part F (2016)
‘रेण॒ की कहानियों में सामाजिक जीवन गाथा के मूलà¥à¤¯
‘रेण॒ की कहानियों में सामाजिक जीवन गाथा के मूलà¥à¤¯
Author(s)
सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€
Abstract
‘रेण॒ ने अपनी कहानियों में अंचल-विशेष की समगà¥à¤° विशेषताओं विविधताओं, गà¥à¤°à¤¾à¤® जीवन के बदलते परिवेश, à¤à¤‚गिमा, अकà¥à¤²à¤¾à¤¹à¤Ÿ, आकà¥à¤°à¥‹à¤¶, घृणा, जीवन की आपाधापी, असंतोष, सामाजिक संपूरà¥à¤£à¤¤à¤¾, विराट, वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• यथारà¥à¤¥, वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤•à¤¤à¤¾, संकà¥à¤°à¤®à¤£ की वसà¥à¤¤à¥ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ आदि को सामाजिक परिवेश के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सारà¥à¤¥à¤• जीवन-संदरà¥à¤à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤µà¥‡à¤·à¤£ का सफल पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया है। साथ ही साथ संासà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ का अनà¥à¤µà¥‡à¤·à¤£ à¤à¥€à¥¤ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ और जीवन मूलà¥à¤¯ की वसà¥à¤¤à¥à¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को यही सामाजिक परिवेश उजागार à¤à¥€ करता है।
How to cite this article:
सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¤¾ कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€. ‘रेण॒ की कहानियों में सामाजिक जीवन गाथा के मूलà¥à¤¯. Int J Appl Res 2016;2(12):411-413.