Vol. 2, Issue 7, Part J (2016)
एक दलित युवक के आत्मपीड़न की अभिव्यक्ति ‘‘अक्करमाशी‘‘ के संदर्भ में
एक दलित युवक के आत्मपीड़न की अभिव्यक्ति ‘‘अक्करमाशी‘‘ के संदर्भ में
Author(s)
लक्ष्मी प्रसाद कर्ष, डाॅ.रमेश कुमार गोहे
Abstract
दलित साहित्य की शुरूआत सर्वप्रथम मराठी साहित्य में हुई। दरअसल मराठी दलित साहित्य ब्राहम्णवादी, वर्णवादी व्यवस्था के विरूद्ध एक पहल है। बाबा साहब अंबेडकर ने अछूतों के सम्मान के लिये आवाज उठाई और तत्कालीन व्यवस्था का विरोध किया। अम्बेडकरवादी विचारधारा से प्रभावित होकर ही दलित साहित्यकारों ने अछूतों की तड़प और बेबसी को शब्द दिये। अनुभव और अभिव्यक्ति की दृष्टि से उनका साहित्य पारंपरिक मराठी साहित्य से सर्वथा अलग है। यह सैकड़ों अछूत जातियों के लिये आक्रोशजनित संघर्ष है। मराठी दलित साहित्य ने अपने पूरे आवेग के साथ इस आक्रोश की चिंगारी को हवा दी। शरण कुमार लिंबाले की आत्मकथा ’’अक्करमाशी’’ इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
How to cite this article:
लक्ष्मी प्रसाद कर्ष, डाॅ.रमेश कुमार गोहे. एक दलित युवक के आत्मपीड़न की अभिव्यक्ति ‘‘अक्करमाशी‘‘ के संदर्भ में. Int J Appl Res 2016;2(7):650-652.