International Journal of Applied Research
Vol. 2, Issue 8, Part J (2016)
वित्तीय समावेशन से बढ़ता सामाजिक सुरक्षा का दायरा
Author(s)
रवीश चन्द्र वर्मा
Abstract
भारत जैसे संघीय राज्य के समन्वित एवं चतुर्दिश प्रगति के लिए संतुलित व समावेशी विकास अनिवार्य हैं। किसी क्षेत्र विशेष के विकास को तीव्र गति दिये जाने से देश या समाज को अल्पकालिक लाभ तो होता है किन्तु सम्पूर्ण समाज के लिए इस प्रकार का विकास हितकारी नहीं होता। भौतिक एवं आर्थिक संसाधनों का संकेन्द्रण एक स्थान पर होने के साथ-साथ समाज में इन संसाधनों का पक्षपातपूर्ण वितरण की भी संभावना भी बढ़ जाती है जिससे देश का विकास अवरूद्ध हो जाता है। भारत के असन्तुलित क्षेत्रीय विकास ने सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक असमानता को उत्पन्न किया है जिससे विकास केवल उन क्षेत्रों में हुआ जहाँ आर्थिक संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता थी। इस प्रकार के क्षेत्रीय असंतुलन ने समावेशी विकास की विचारधारा को सुदृढ़ किया। समावेशी विकास समाज के समस्त वर्ग के लोगों के विकास की मान्यता को बल देता है फिर वे चाहे पहाड़ी, मैदानी या अन्य क्षेत्रीय स्थानों पर रहने वाले लोग हों। वित्तीय समावेशन समावेशी विकास का ही एक अंग है। यह एक ऐसा उपकरण है जो दूर-दराज के क्षेत्रों में रह रहे लोगों को उनकी आवश्यकता और आकस्मिकताओं से उनके हितों की रक्षा करने में सहायक होता है। वित्तीय समावेशन ने सामाजिक सुरक्षा के परिधि को विस्तृत किया है और इससे एक ऐसे वातावरण के सृजन करने में सहायता मिली है जो समाज में रह रहे लोगों को प्रभावी सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था तक पहुँच बनाने में उपयोगी सिद्ध हुयी है। प्रस्तुत अध्ययन दो भागों में विभाजित हैं जिसके प्रथम भाग में वित्तीय समावेशन और उससे जुड़े हुए विभिन्न पहलुओं एवं प्रयासों का उल्लेख किया गया हैं और द्वितीय भाग में वित्तीय समावेशन से समाज किन रूपों में लाभान्वित हो रहा है इसका वर्णन किया गया है।
How to cite this article:
रवीश चन्द्र वर्मा. वित्तीय समावेशन से बढ़ता सामाजिक सुरक्षा का दायरा. Int J Appl Res 2016;2(8):626-630.