Contact: +91-9711224068
International Journal of Applied Research
  • Multidisciplinary Journal
  • Printed Journal
  • Indexed Journal
  • Refereed Journal
  • Peer Reviewed Journal

ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

IMPACT FACTOR (RJIF): 8.4

Vol. 2, Issue 8, Part L (2016)

पराशरस्मृति दण्डविधान प्रायश्चित

पराशरस्मृति दण्डविधान प्रायश्चित

Author(s)
ममता तिवारी
Abstract
पराशरस्मृतीय दण्ड विधान प्रायश्चित 12 अध्यायों में विभक्त है। पराशरस्मृति के प्रणेता भगवान वेदव्यास के पिता ऋषि पराशर है, जिन्होंने चारों वर्णों की धर्म व्यवस्था को समझकर सहज साध्य रूप धर्म की मर्यादा को निर्देशित किया है तथा कलयुग में दान धर्म को प्रमुख बताया है। प्रथम अध्याय के 30 श्लोकों में कहा गया है कि सतयुग में प्राण अस्थिगत, त्रेतायुग में मांसगत, द्वापरयुग में रूधिर में, तथा कलयुग में अन्न में बसते है। कुलयुग में आचार-विचार, परिपालन मुख्य धर्म है। तृतीय अध्याय में शिशुओं, गर्भवती में अशौच एवं यज्ञोपवित होने तक अशौच व्यवस्था वर्णित है। चैथे अध्याय में गर्भपात को ब्रह्म हत्या के तुल्य मानते हुए इससे दुना पाप का भागी होना बताया गया है। छवाॅ अध्याय में किसी भी प्राणी के बध को पाप कहा गया है तथा इनके प्रायश्चित का विधान बताया गया है। नौवे अघ्याय में स्त्री, बालक, सेवक, रोगी तथा दुःखियों पर कोप न करने का निर्देश दिया गया है। बारहमें अध्याय में किसी भी पापी के साथ शयन, संसर्ग एवं आशन पर बैठना तथा भोजन करना भी पाप कहा गया है। जिसमें प्रायश्चित के लिए गोव्रत पालन का निर्देश है।
Pages: 842-844  |  843 Views  333 Downloads
How to cite this article:
ममता तिवारी. पराशरस्मृति दण्डविधान प्रायश्चित. Int J Appl Res 2016;2(8):842-844.
Call for book chapter
International Journal of Applied Research
Journals List Click Here Research Journals Research Journals