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International Journal of Applied Research
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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 3, Issue 1, Part L (2017)

एखनो प्रारंगिक अछि ‘दू कुहेसक बाट’

एखनो प्रारंगिक अछि ‘दू कुहेसक बाट’

Author(s)
गीता कुमारी
Abstract
कम शब्द मे बहुतरास बात कहनिहार, साहित्यकें सूत्रमे लिखनिहार, निश्च्छल जल सदृश्य बहनिहार, नव पौधकें उचित खाद, जल पटौनिहार, साहित्यमे ख्ूाब लम्बा डाँरि खिचनिहार, एहन जे छवि सोंझाँमे ठाढ़ होइत अछि ओ थिकाह-जीवकान्त। ई अपना समयक प्रायः सभसँ बेसी लिखक्कड़ साहित्यकार छलाह तकरे परिणाम थिक जे कविता, कथा, बाल साहित्य, आत्मकथा, उपन्यास अतिरिक्त ई निबन्ध, समीक्षा, पोथी-परिचय आ सामाजिक समस्या पर गंभीरतापूर्वक टिप्पणी लिखलनि जे मैथिली साहित्यक निधि प्रमाणित भेल। ई पाँच गोट उपन्यास लिखलाह- ‘‘दू कुहेसक बाट’’, ‘‘पीयर गुलाब छल’’, ‘‘नहि कतहु नहि’’, ‘‘पनिपत’’ आ ‘‘अग्निबान’’। मुदा, एतय हम, ‘‘दू कुहेसक बाटक’’ चर्चा कऽ रहल छी।
Pages: 886-887  |  505 Views  50 Downloads
How to cite this article:
गीता कुमारी. एखनो प्रारंगिक अछि ‘दू कुहेसक बाट’. Int J Appl Res 2017;3(1):886-887.
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