Vol. 3, Issue 1, Part L (2017)
आधà¥à¤¨à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ साहितà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ राजा राममोहन रायः à¤à¤• à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨
आधà¥à¤¨à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ साहितà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ राजा राममोहन रायः à¤à¤• à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨
Author(s)
डाॅ. पà¥à¤°à¤¿à¤¯ अशोक
Abstract
राममोहन के जनà¥à¤® के समय अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जब ईसà¥à¤Ÿ इंडिया कंपनी ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤¿à¤• पैर जमाना आरंठकर दिया, उस अराजक राजनैतिक और सामाजिक परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में, देश में शिकà¥à¤·à¤¾ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ कैसी रही होगी कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करना बहà¥à¤¤ कठिन नहीं है। उस काल में शिकà¥à¤·à¤¾ बहà¥à¤¤ ही सीमित वरà¥à¤— को ही उपलबà¥à¤§ थी। गांवों में कà¥à¤› पाठशाला या टोल थे जहां संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ शिकà¥à¤·à¤¾ दी जाती और कà¥à¤› मसà¥à¤œà¤¿à¤¦à¥‹à¤‚ से संलगà¥à¤¨ मदरसों या मकतबों में अरबी-फारसी में धारà¥à¤®à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ दी जाती। संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ के उचà¥à¤š अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ के लिठउतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में वाराणसी, उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ जैसे केंदà¥à¤° थे तो अरबी-फारसी के केंदà¥à¤° पटना, रामपà¥à¤°, दिलà¥à¤²à¥€ आदि नगर थे। जनशिकà¥à¤·à¤¾ या साकà¥à¤·à¤°à¤¤à¤¾ का कोई à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ इस काल में होना संà¤à¤µ नहीं था। छापेखाने की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ इसी काल में à¤à¤¾à¤°à¤¤ की à¤à¥‚मि पर पहले-पहल आरंठहà¥à¤ˆà¥¤ फारसी अà¤à¥€ तक राजà¤à¤¾à¤·à¤¾ थी। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ à¤à¤¾à¤°à¤¤ में अंगरेजी शासन को पचास वरà¥à¤· हो रहे थे लेकिन पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ और अदालत का काम मà¥à¤—लकालीन तौर तरीके से चल रहा था। इसी कारण अरबी-फारसी और उरà¥à¤¦à¥‚ शिकà¥à¤·à¤¾ की ओर अà¤à¤¿à¤œà¤¾à¤¤ या संपनà¥à¤¨ वरà¥à¤— का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ था। फारसी शिकà¥à¤·à¤¾ के लिठराममोहन को बचपन में पटना à¤à¥‡à¤œ दिया गया था। वारन हेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚गà¥à¤¸ के जमाने में यह महसूस किया गया कि इसà¥à¤²à¤¾à¤® धरà¥à¤® और शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के पठन-पाठके लिठऔर अरबी-फारसी और उरà¥à¤¦à¥‚ के उनà¥à¤¨à¤¯à¤¨ के लिठकलकतà¥à¤¤à¤¾ में कोई विदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ नहीं है। इसी से हेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚गà¥à¤¸ ने 1780 में कलकतà¥à¤¤à¤¾ ‘मदरसा‘ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की।इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° देखा जाय तो संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ और अरबी-फारसी की शिकà¥à¤·à¤¾ कई शताबà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से सीमित सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ के लिठसीमित वरà¥à¤— तक ही नियंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ था। सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ था पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤•à¥€à¤¯ और धारà¥à¤®à¤¿à¤• ठेकेदारी। आज के यà¥à¤— में जिसे जनशिकà¥à¤·à¤¾ की संजà¥à¤žà¤¾ दी जाती है यह विचार उस समय तक लोगों के धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में आया ही न था।
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डाॅ. पà¥à¤°à¤¿à¤¯ अशोक. आधà¥à¤¨à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ साहितà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ राजा राममोहन रायः à¤à¤• à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨. Int J Appl Res 2017;3(1):926-929.