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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 3, Issue 1, Part L (2017)

तुलसीदास की रचनाओं में छन्द और संगीत

तुलसीदास की रचनाओं में छन्द और संगीत

Author(s)
संगीता कुमारी झा
Abstract
गोस्वामी तुलसी दास वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, होमर, शेक्सपेय आदि के अतर के विष्वकवि हैं इनके प्रत्येक रचना में छन्द और संगीतात्मकता का विषेष ध्यान रखा गया है। मुक्तक काव्य की संगीतात्मकता आत्मामिव्यंजना, भावन्विति, सहज अन्तः प्रेरणा शैलीगत स्वभाविकता, भाषा की सुकुमारता आदि तत्वों का समावेष कर तुलसीदास काव्य की आत्मा का उत्कर्ष भी किया है और शरीर का शृंगार भी। रामचरित मानस के संस्कृत श्लोक को छोड़कर शेष संपूर्ण महाकाव्य में दोहा-चैपाई और सोरठा में ही रचना की गई है, यद्यपि भावधारा और प्रसंग के अनुसार लय-गति-ताल का अनुषरण करते हुए हरिगीतिका आदि छंदो के उपयोग के अनेक उदाहरण मिलते हैं। गोस्वामी की अन्य प्रमुख कृतियों में कवितावली और हनुमान बाहुकर के प्रिय छंद कवित्व और सवैया है। ‘‘रामाजा प्रष्न’’ और ‘दोहावली’ में दोहा छन्द ‘‘पार्वती मंगल’’ और जानकी मंगला सोहर और हरिगीतिका छन्द का उपयोग दिखाई देता है। विनय पत्रिका गीतावली और ‘‘कृष्ण गीतावली’’ में प्रगीत और मुक्तक के रचनातंत्र का प्रयोग है। पद शैली में रचित ये प्रगति और मुक्तक कल्याण, गौरी, असावरी, भैरवी, केदारी धनाश्री, मल्हार, रामकली, होड़ी, मारू, विलाव आदि राग रागनियों में निबद्ध हैं। स्वामी हरिदास की संगीत परम्परा से रस-सिक्त गायन शैली का लाभ उठाते हुए और ब्रजभाषा की मँजी हुई प्रगीतात्मकता का निखार प्रस्तुत करते हुए तुलसीदास ने संगीत के प्रति भी अपनी गहरी अभिरूचि और रागमयता का परिचय दिया है।
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How to cite this article:
संगीता कुमारी झा. तुलसीदास की रचनाओं में छन्द और संगीत. Int J Appl Res 2017;3(1):957-959.
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