Vol. 3, Issue 3, Part A (2017)
बिहार स्वाधीनता आन्दोंलन में काँग्रेस और मुस्लिमलीग की सत्ता के साथ अँग्रेजों का सौदेबाजी
बिहार स्वाधीनता आन्दोंलन में काँग्रेस और मुस्लिमलीग की सत्ता के साथ अँग्रेजों का सौदेबाजी
Author(s)
पूनम कुमारी
Abstract
15 अगस्त 1947 के अंतर्विरोध आज तक इतिहासकारों को हैरान कर रहे हैं। सीमा के दोनों ओर के लोगों को भी उनके नतीजों से मुक्ति नहीं मिल पाई है। आजादी एक लम्बे, गौरवपूर्ण संघर्ष के बाद हासिल की गई थी और इससे करोड़ो लोगों का सपना पूरा हुआ था। लेकिन उसके साथ ही एक खूनी त्रासद विभाजन ने हमारे उदीयमान स्वतंत्र राष्ट्र के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया। इस संदर्भ में दो महत्वपूर्ण सवाल उठते है। अंग्रेजों ने अततः भारत क्यों छोड़ा ? विभाजन की योजना कांग्रेस ने क्यों स्वीकार की ?इन सवालों का साम्राज्यवादी जवाब बहुत सीधा-सादा है। ब्रिटेन चाहता था कि भारतीय अपना शासन खुद चलाएँ और आजादी उसकी इसी इच्छा का नतीजा थी। विभाजन सदियों पुराने हिन्दु-मुसलिम वैमनस्य का दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम था, इस बात का सबूत यह है कि ये दोनों समुदाय आपस में तय नहीं कर पाए कि सत्ता किसे सौपी जाए और कैसे ? साम्यवादी मानते है कि आजादी 1946-47 के उन जन-सघर्षो द्वारा हासिल की गई, जिनमें बहुत से कम्युनिस्टों ने योगदान किया और अनेक मौकों पर जिनका नेतृत्व भी किया। लेकिन कांग्रेस के बुर्जुआ नेता इस क्रांति उभार से डर गए और उन्होंने साम्राज्यवादियों से समझौता कर सŸाा अपने हाथ में ले ली। राष्ट्र को इसकी कीमत विभाजन के रूप में चुकानी पड़ी।
How to cite this article:
पूनम कुमारी. बिहार स्वाधीनता आन्दोंलन में काँग्रेस और मुस्लिमलीग की सत्ता के साथ अँग्रेजों का सौदेबाजी. Int J Appl Res 2017;3(3):55-59. DOI:
10.22271/allresearch.2017.v3.i3a.7481