Vol. 3, Issue 3, Part F (2017)
पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤° की राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ चेतनाः करà¥à¤®à¤à¥‚मि के संदरà¥à¤ में
पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤° की राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ चेतनाः करà¥à¤®à¤à¥‚मि के संदरà¥à¤ में
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सà¥à¤°à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤° कà¥à¤®à¤¾à¤° गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾
Abstractराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ संचेतना से अनà¥à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ साहितà¥à¤¯ को कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•à¤¾à¤°à¥€ और मानवतावादी कहा जाता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह à¤à¥‡à¤¦-à¤à¤¾à¤µ से रहित à¤à¤• उनà¥à¤®à¥à¤•à¥à¤¤ समाज के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में सहायक होता है। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤° हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ की नई राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ और जनवादी चेतना के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° हैं। अपने उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ और कहानियों में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने देष की पराधीनता के यथारà¥à¤¥ को उसके वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• आयामों और जटिलताओं के साथ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया। देष की आजादी की समसà¥à¤¯à¤¾ उनके लिठमातà¥à¤° à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• अथवा राषà¥à¤Ÿà¥à¤°-पà¥à¤°à¥‡à¤® की समसà¥à¤¯à¤¾ नहीं थी वरन वह आरà¥à¤¥à¤¿à¤• शोषण और दमन से जà¥à¥œà¥€ हà¥à¤ˆ थी। बà¥à¤°à¤¿à¤Ÿà¤¿à¤· शासकों की शोषण-नीति से पैदा हà¥à¤ˆ किसानों की निरà¥à¤§à¤¨à¤¤à¤¾, उनका दयनीय जीवन तथा अमानवीय परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का यथारà¥à¤¥ वरà¥à¤£à¤¨ उनकी रचनाओं में मिलता है।
1932 में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ ‘करà¥à¤®à¤à¥‚मि’ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤° की उतà¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ रचना है। इस वृहत उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥€à¤¨à¤¤à¤¾ संगà¥à¤°à¤¾à¤® की विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ à¤à¤¾à¤à¤•à¥€ मिलती है। समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ राजनीतिक और सामाजिक परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ है। राजनीतिक आनà¥à¤¦à¥‹à¤²à¤¨ के अतिरिकà¥à¤¤ अछूतोदà¥à¤µà¤¾à¤°, जमींदार-किसान-संघरà¥à¤·, सूदखोरी, लगान-वसूली जैसे-विषयों का यथारà¥à¤¥ चितà¥à¤°à¤£ इस उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ में हà¥à¤† है। यà¥à¤— समाज की विकृतियों, विशृंखलाओं और रूà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के विरूदà¥à¤µ जन चेतना को जागृत करना इस उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ का उदà¥à¤¦à¥‡à¤·à¥à¤¯ है।
पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤° की राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯-चेतना à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज में हर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की समानता से जà¥à¥œà¥€ थी। समाज में सà¥à¤¦à¥ƒà¥ सामà¥à¤¯-à¤à¤¾à¤µ को वे राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ की पहली शरà¥à¤¤ मानते थे। आज फिर विघटनकारी शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बाहà¥à¤¯ और आंतरिक अषांति उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ कर रही हैं। किसान आतà¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ कर रहे हैं। मजदूर à¤à¥‚खमरी से तà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ हैं। इस परिपà¥à¤°à¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में उनकी राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯-चेतना समकालीन परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर जितनी खरी उतरती है, उतनी ही आज की परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€à¥¤ निसà¥à¤¸à¤‚देह पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤° का साहितà¥à¤¯ देषकाल की सीमा में आबदà¥à¤§ न होकर शाषà¥à¤µà¤¤ है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ सामाजिक परिपà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में उनके साहितà¥à¤¯ में अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ चेतना नव जागरण का संदेष देती है और आज à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤‚गिक है।
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सà¥à¤°à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤° कà¥à¤®à¤¾à¤° गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾. पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤šà¤¨à¥à¤¦à¥à¤° की राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ चेतनाः करà¥à¤®à¤à¥‚मि के संदरà¥à¤ में. Int J Appl Res 2017;3(3):378-382. DOI:
10.22271/allresearch.2017.v3.i3f.10865