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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 3, Issue 3, Part F (2017)

प्रेमचन्द्र की राष्ट्रीय चेतनाः कर्मभूमि के संदर्भ में

प्रेमचन्द्र की राष्ट्रीय चेतनाः कर्मभूमि के संदर्भ में

Author(s)
सुरेन्द्र कुमार गुप्ता
Abstract
राष्ट्रीय संचेतना से अनुप्राणित साहित्य को कल्याणकारी और मानवतावादी कहा जाता है क्योंकि यह भेद-भाव से रहित एक उन्मुक्त समाज के निर्माण में सहायक होता है। प्रेमचन्द्र हिन्दुस्तान की नई राष्ट्रीयता और जनवादी चेतना के प्रतिनिधि साहित्यकार हैं। अपने उपन्यासों और कहानियों में उन्होंने देष की पराधीनता के यथार्थ को उसके व्यापक आयामों और जटिलताओं के साथ प्रस्तुत किया। देष की आजादी की समस्या उनके लिए मात्र भावनात्मक अथवा राष्ट्र-प्रेम की समस्या नहीं थी वरन वह आर्थिक शोषण और दमन से जुड़ी हुई थी। ब्रिटिष शासकों की शोषण-नीति से पैदा हुई किसानों की निर्धनता, उनका दयनीय जीवन तथा अमानवीय परिस्थितियों का यथार्थ वर्णन उनकी रचनाओं में मिलता है।
1932 में प्रकाषित ‘कर्मभूमि’ प्रेमचन्द्र की उत्कृष्ट रचना है। इस वृहत उपन्यास में भारत के स्वाधीनता संग्राम की विस्तृत झाँकी मिलती है। सम्पूर्ण उपन्यास राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित है। राजनीतिक आन्दोलन के अतिरिक्त अछूतोद्वार, जमींदार-किसान-संघर्ष, सूदखोरी, लगान-वसूली जैसे-विषयों का यथार्थ चित्रण इस उपन्यास में हुआ है। युग समाज की विकृतियों, विशृंखलाओं और रूढ़ियों के विरूद्व जन चेतना को जागृत करना इस उपन्यास का उद्देष्य है।
प्रेमचन्द्र की राष्ट्रीय-चेतना भारतीय समाज में हर प्रकार की समानता से जुड़ी थी। समाज में सुदृढ़ साम्य-भाव को वे राष्ट्रीयता की पहली शर्त मानते थे। आज फिर विघटनकारी शक्तियाँ बाह्य और आंतरिक अषांति उत्पन्न कर रही हैं। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। मजदूर भूखमरी से त्रस्त हैं। इस परिप्र्रेक्ष्य में उनकी राष्ट्रीय-चेतना समकालीन परिस्थितियों पर जितनी खरी उतरती है, उतनी ही आज की परिस्थितियों पर भी। निस्संदेह प्रेमचन्द्र का साहित्य देषकाल की सीमा में आबद्ध न होकर शाष्वत है। वर्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य में उनके साहित्य में अभिव्यक्त राष्ट्रीय चेतना नव जागरण का संदेष देती है और आज भी प्रासंगिक है।
Pages: 378-382  |  1027 Views  717 Downloads


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How to cite this article:
सुरेन्द्र कुमार गुप्ता. प्रेमचन्द्र की राष्ट्रीय चेतनाः कर्मभूमि के संदर्भ में. Int J Appl Res 2017;3(3):378-382. DOI: 10.22271/allresearch.2017.v3.i3f.10865
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