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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 3, Issue 5, Part I (2017)

महादेवी के काव्य में रहस्यवाद

महादेवी के काव्य में रहस्यवाद

Author(s)
डाॅ. मनीषा शुक्ला
Abstract
समग्रतः छायावादी साहित्य में रहस्यवाद का जो स्वरूप विद्यमान है, वह आर्य संस्कृति की उपज है। छायावादी कवियों के रहस्यवाद पर विभिन्न विचारधाराओं का प्रभाव दिखायी देता है। उन्होंने वैदिक साहित्य से अद्वैत की छाया ग्रहण की और लौकिक प्रेम का समन्वय करके उसे बोधगम्य बना दिया। उनकी रहस्यवादी भावना गूढ़ न होकर सरल तथा मुक्तिदात्री है। उन्होंने प्रतीयमान जगत् की अवास्तविकता का बोध कराकर मानव जीवन को ईश्वरोन्मुख तथा चरित्र प्रधान बनाया।
वस्तुतः छायावाद के सम्बन्ध में जो विभिन्न धारणायें आरम्भ से प्रचलित हुई वे अत्यन्त उतावली में बना ली गयी थीं। इसी कारण कहीं से एकांगी हैं और कहीं पर अत्युक्तिपूर्ण। सच तो यह है कि छायावादी कविताओं में एक साथ तीन-तीन क्रान्तियां हुईं, जिससे यह काव्यधारा पहले बनकर आयी। पहली क्रान्ति विचार और भावना के क्षेत्र में हुई, दूसरी कला के क्षेत्र में और तीसरी साहित्य परम्परा में। यह परिवर्तन इतनी तेजी से हुआ कि लोग उसे समझ नहीं पाये। अन्धों के देश में आँधी के जैसे विविध परिभाषाएँ होती हैं। उसी प्रकार प्रारम्भ में हिन्दी आलोचना क्षेत्र में छायावादी कविता का स्वागत हुआ। आज बहुत समय बीत जाने पर लोगों के सम्यक रूप से छायावादी कविता और उसके महत्व को समझा तथा स्वीकार किया है।


Pages: 611-615  |  12648 Views  10543 Downloads


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How to cite this article:
डाॅ. मनीषा शुक्ला. महादेवी के काव्य में रहस्यवाद. Int J Appl Res 2017;3(5):611-615.
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