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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 3, Issue 5, Part L (2017)

तेजपाल सिंह ‘तेज‘ के काव्य में जन-जागरण

तेजपाल सिंह ‘तेज‘ के काव्य में जन-जागरण

Author(s)
डॉ. देवी प्रसाद
Abstract
जितना मैंने तेजपाल सिंह ‘तेज’ को उनके साहित्य-कर्म की निजता के आधार पर जाना-पहचाना है, उसके आधार पर मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि वे एक साहित्यकार के रूप में सामाजिक यथार्थ के चितेरे, जग-जीवन के व्याख्याता और व्यंग्य के साधक तो हैं ही, साथ ही उनके काव्य में मानव-जीवन की अनुपम छवियाँ देखने को मिलती हैं। उन्होंने मानव-जीवन के यथार्थ का चित्रण किया है। उनका काव्य उनके अनुभव से प्रेरित है। वे एक ऐसे स्वस्थ समाज का निर्माण होते देखना चाहते हैं, जिसमें सभी सुखी हों, कुत्सिक परम्पराएँ, रूढ़ियाँ, कुरीतियाँ, शोषण, अन्याय-अत्याचार और आडंबर न हांे ।
तेजपाल सिंह ‘तेज’ का दृष्टिकोण मानवतावादी है। उन्होंने किसी भी रूप में पीड़ा भोगने वाले व्यक्ति के प्रति सहानुभूति का भाव ही नहीं दर्शाया, अपितु संवेदना को महत्ता प्रदान की है। साहित्यकार के लिए संवेदनशील होना पहला और आवश्यक गुण है। तेजपाल सिंह ‘तेज’ संवेदनशील होने के साथ-साथ एकजागरूक और जुझारू नागरिक भी हैं। यह बात उनकी ग़ज़लों, गीतों, कविताओं और गद्य साहित्य से स्पष्ट होती है।
Pages: 882-886  |  803 Views  227 Downloads


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How to cite this article:
डॉ. देवी प्रसाद. तेजपाल सिंह ‘तेज‘ के काव्य में जन-जागरण. Int J Appl Res 2017;3(5):882-886.
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