Vol. 3, Issue 7, Part O (2017)
वैषà¥à¤£à¤µ à¤à¤•à¥à¤¤à¤ƒ कवि सूरदास की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ साधना
वैषà¥à¤£à¤µ à¤à¤•à¥à¤¤à¤ƒ कवि सूरदास की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ साधना
Author(s)
डाॅ. अशोक कà¥à¤®à¤¾à¤° गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾
Abstractहिंदी साहितà¥à¤¯ में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ साधना के सà¥à¤µà¤°à¥‚प की à¤à¤• अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ परंपरा रही है। यजà¥à¤ž, तप, जà¥à¤žà¤¾à¤¨, योग और à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ के रूप में साधना की अजसà¥à¤° धारा वैदिक काल से आज तक निरनà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ हैं। à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ सदैव मानव की सहज और सरल पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के साथ अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ होती रही हैं। शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¦à¥à¤à¤¾à¤—वदॠगीता में निषà¥à¤•à¤¾à¤® à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ योग को à¤à¤—वदॠपà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का सरलतम साधन माना है। इसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ à¤à¤¾à¤—वत धरà¥à¤® के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ परंपरा का विकास कà¥à¤°à¤® निरनà¥à¤¤à¤° जारी रहा जो दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के ‘आलवार’ वैषà¥à¤£à¤µ à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहोकर समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में फैल गया और यह वैषà¥à¤£à¤µ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ साहितà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤¾à¤£ ततà¥à¤µ बना।
उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में वैषà¥à¤£à¤µ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ को पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ करने में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ रामानंद और सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ वलà¥à¤²à¤à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ का विशेष योगदान रहा। इसी परंपरा में सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ वलà¥à¤²à¤à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤¿à¤¤ कृषà¥à¤£ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤§à¤¾à¤°à¤¾ के सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कवि सूरदास हà¥à¤ जो अषà¥à¤Ÿà¤›à¤¾à¤ª के सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ कवि à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤®à¤¾à¤°à¥à¤— के जहाज कहलाà¤à¥¤ वैषà¥à¤£à¤µ à¤à¤•à¥à¤¤ कवि सूरदास ने à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¸à¤¾à¤§à¤¨à¤¾ के लिठपà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¤à¤¤à¥à¤µ को पà¥à¤°à¤®à¥à¤–ता दी। वे शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¦à¥à¤à¤¾à¤—वत में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ अकाम और सकाम दोनों पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ को सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤°à¤¤à¥‡ हैं साथ ही नवधा à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ का मनोयोगपूरà¥à¤µà¤• अपने साहितà¥à¤¯ में वरà¥à¤£à¤¨ करते हैं। उनकी à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¸à¤¾à¤§à¤¨à¤¾ वैषà¥à¤£à¤µà¥€ है। वे इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के उचà¥à¤š कोटि के कवि हैं। à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ उनकी रग-रग में समाई हà¥à¤ˆ है, वे कहते हैं- ‘‘रे मन मूरख जनम गंवायौ। करि अà¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ विषय रस गीधà¥à¤¯à¥Œ, सà¥à¤¯à¤¾à¤® सरन नहिं आयौ।’’ यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है कि सूरदास वैषà¥à¤£à¤µ à¤à¤•à¥à¤¤ कवियों में अपना शीरà¥à¤· सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ रखते हैं।
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डाॅ. अशोक कà¥à¤®à¤¾à¤° गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾. वैषà¥à¤£à¤µ à¤à¤•à¥à¤¤à¤ƒ कवि सूरदास की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ साधना. Int J Appl Res 2017;3(7):1064-1065.