International Journal of Applied Research
Vol. 5, Issue 1, Part E (2019)
श्यौराज सिंह बेचैन के साहित्य में दलित-चेतना
Author(s)
प्रियंका कुमारी
Abstractसमकालीन हिन्दी साहित्य में दलित-विमर्ष की धारा प्रखरता से प्रवाहित हो रही है और अलित चिंतक-साहित्यकार अपनी कृतियों के जरिए ना सिर्फ इसे प्रवाहमान बनाए हुए है बल्कि दलित-विमर्ष को नव आयाम प्रदान कर दलित चेतना को भी जागृत कर रहे हैं। दलित-चेतना की उत्पत्ति हिन्दू वर्ण व्यवस्था विरूद्ध स्वतंत्रतापूर्व महात्मा ज्योतिबा फूले एवं दलित मसीहा बाबा साहेब डाॅ. भीमराव अम्बेडकर के द्वारा राष्ट्रव्यापी स्तर पर चलाए दलित-आंदोलन से हुई है। जिसका मूल ध्येय सदियों से शोषित-पीड़ित दलित जातियों को अपने हक-हकूक, मानवीय अधिकार प्राप्ति हेतु संबल और जागरूक बनाना है।
आधुनिक युग में दलित साहित्यकारों ने जातिगत रूढ़ियों के विरूद्ध जैसा शंखनाद किया है उससे यह साफ हो जाता है कि दलितों में अस्तित्व बोध जागृत हो चुकी है और वे मनुवादी संविधान को नकारते हुए जन्मप्रदत्त श्रेणीक्रम के बदले मनुष्य की श्रेष्ठता का आधार उसके कर्म को मानते है। दलित चेतना को प्रखर बनाने में दलित साहित्यकार मोहनदास नैमिषराय ओमप्रकाष वाल्मीकि, शरण कुमार लिम्वाले, सूरजपाल चैहान आदि का योगदान रहा है। विवेच्य लेखक डाॅ. श्यौराज सिंह बेचैन भी दलित साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है और इनकी दलित चेतना इसलिए प्रासंगिक प्रतीक होती है क्योंकि ये सिर्फ दलित-पीड़ा को ही अभिव्यक्त नहीं करते है वरन् इनका चिंतन समस्या के जड़ को दग्ध करने की प्रेरणा देता है।
How to cite this article:
प्रियंका कुमारी. श्यौराज सिंह बेचैन के साहित्य में दलित-चेतना. Int J Appl Res 2019;5(1):486-487.