Vol. 5, Issue 10, Part A (2019)
उत्तररामचरित में वर्णविन्यासवक्रता
उत्तररामचरित में वर्णविन्यासवक्रता
Author(s)
विजयलक्ष्मी
Abstract
वैचित्र्यपूर्ण कथन वक्ता के बौद्धिक विलास को प्रस्तुत करने के साथ ही श्रोता के मानस में आह्लाद विशेष को उत्पन्न करता है। अतः काव्यशास्त्रीय आचार्यों ने कथन वैचित्र्य का विविध प्रकार से समर्थन करते हुए उसे काव्य का शोभावर्धक तत्त्व स्वीकार किया है। आचार्य कुन्तक ने इसी तत्त्व का वक्रोक्ति रूप में वर्णन कर उसे काव्य का प्राणभूत माना है। उन्होंने वक्रोक्ति को व्यापक स्वरूप का प्रतिपादन कर उसके प्रमुख छः भेदों को वर्णित किया है। जिसमें काव्यशास्त्र के प्रायः सभी तत्त्व समाहित हो जाते हैं। इन्हीं में से वर्णों का विशिष्ट रूप से विन्यास अर्थात् वर्णविन्यास-वक्रता भी अन्यतम है। संस्कृत रूपकों में प्रमुख आचार्य भवभूति द्वारा विरचित करुण रस प्रधान नाटक उत्तररामचरित में वर्णविन्यासवक्रता का सम्पूर्ण स्वरूप स्पष्ट रूप से प्रतिभासित होता है। प्रस्तुत शोधपत्र में उत्तररामचरित में वर्णविन्यासवक्रता के स्वरूप को प्रस्तुत किया जा रहा है।
How to cite this article:
विजयलक्ष्मी. उत्तररामचरित में वर्णविन्यासवक्रता. Int J Appl Res 2019;5(10):08-11.