वाल्मीकि रामायण और उत्तरवर्ती राजनीतिक व्यवस्थाएं
Author(s)
डॉ. देवेश कुमार मिश्र
Abstract
वाल्मीकि रचित रामायण एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें विश्व के सभी समुदायों की चिंता की गई है। विश्व की सभी भाषाएं, संस्कृतियां, जातियां तथा भौगोलिक परिस्थितियां, यह सभी जंबूद्वीप के भारतवर्ष में भी पाई जाती हैं। राम के अयोध्या से श्रीलंका तक की विजय यात्रा में गंगा जमुना के मैदानों से निर्मित भूभाग से लेकर विंध्याचल के सघन पर्वतों को स्पर्श करते हुए,दक्षिण के पठारी भाग होते हुए, तमिलनाडु के सागर तटीय भूभाग को अनुभूत कर, श्रीलंका तथा भारत के बीच में सेतु बनाकर श्रीलंका तक की विजय की स्थितियों का वर्णन ही इस बात का साक्षी है कि, मूल इतना विस्तृत है तो भविष्य का विस्तार कितना विस्तृत होगा। अनेक नदियों, सरोवरों, का पानी पीते हुए उत्तर भारत और दक्षिण भारत की अनेक बोलियों को समझते हुए, विंध्याचल के पर्वतों, दक्षिण भारत की उन्नत शिखरों के आदिवासी, वनवासी, वानर भालुओं को संगठित करके राम ने इस देश की एकता और अखंडता की परिभाषा रच दी है। हजारों वर्ष पूर्व यह कार्य हुआ। किंतु रामायण काल के बाद महाभारत में सभी आदर्श गिरते हुए दिखाई दिए। महाभारत के कारण देश के सांस्कृतिक व्यवहार में गिरावट आई। बाद में राजवंशों हर्यक वंश, मौर्य वंश, गुप्त वंश, शुंग वंश, चोल वंश, पल्लव,चालुक्य तथा परमार तोमर आदि वंशों द्वारा भारतीय राजनीति को दिशा देने का प्रयास किया जाता रहा।
How to cite this article:
डॉ. देवेश कुमार मिश्र. वाल्मीकि रामायण और उत्तरवर्ती राजनीतिक व्यवस्थाएं. Int J Appl Res 2019;5(10):180-182.