Vol. 5, Issue 2, Part C (2019)
छठी शताब्दी ई॰पू॰ में व्यापार-वाणिज्यक का परिदृय
छठी शताब्दी ई॰पू॰ में व्यापार-वाणिज्यक का परिदृय
Author(s)
पूनम कुमारी
Abstract
छठी शताब्दी भारत के इतिहास में एक निर्णायक कालखंड था। भारत में प्रबल नगरीकरण के द्वितीय अध्याय ही शुरुआत इसी काल में हुई। वैदिक काल में जो सभ्यता का प्रखर सूर्योदय हुआ, वह वैदिक धर्म इस समय तक आकर तरह-तरह की व्याधियों एवं पाखंडों से घिर गया। वैदिक धर्म की वर्जनाओं के कारण देश की सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक प्रणाली मानों कुंद सी पड़ गयी थी। लोग साँसत का अनुभव करने लगे थे। ब्राह्मणवाद अपने चरम पर पहुँच चुका था। बन्धन के इस युग में अंदर ही अंदर चुनौती के स्वर उभरने लगे थे एवं पुरोहितों के कारण बोझ से लगनेवाले कर्मकांडों के विरोध में अनेक बौद्धिक-धार्मिक मत एवं मतवाद उभरने लगे थे। वर्द्धमान महावीर एवं गौतम बुद्ध के स्वर इनमें सबसे प्रबल होकर उभरे जिन्होंने वेद की सत्ता को खुली चुनौती देते हुए लोगों के समक्ष एक नवीन धर्म उपस्थित किया। जैन एवं बौद्ध धर्म के मध्यम मार्ग तथा नवीन आर्थिक चिंतन ने लोगों को खासा प्रभावित किया। फलतः वैदिक धर्म के बोझ तले दबे लोगों ने इन दोनों धर्मो को अपनाना शुरू किया एवं नये जोश-खरोस के साथ उद्योग एवं व्यापार में लग गये। इसका परिणाम यह निकला कि उद्योग एवं वाणिज्य-व्यापार ने आशातीत सफलता प्राप्त की। लोगों की आर्थिक समृद्धियाँ बढ़ीं। इस नवीन आर्थिक परिवेश में नगरों की नयी परिभाषा गढ़ी। नगर जो पहले केवल सीमित गतिविधियों ने केन्द्र थे वे अब प्रबल आर्थिक गतिविधियों के भी केन्द्र बन गये। मुख्य नगरों के अगल-बगल व्यवसायियों एवं कारीगरों की उपनगरीय बस्तियाँ बसने लगीं। जो परंपरागत नगर थे उनकी भव्यता में चार चांद लगने लगे।
How to cite this article:
पूनम कुमारी. छठी शताब्दी ई॰पू॰ में व्यापार-वाणिज्यक का परिदृय. Int J Appl Res 2019;5(2):284-287.