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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 5, Issue 3, Part D (2019)

मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में नारी संवेदना और यथार्थ

मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में नारी संवेदना और यथार्थ

Author(s)
संजय कुमार
Abstract
समकालीन हिन्दी उपन्यासों में मैत्रेयी पुष्पा का नाम अग्रगण्य रहा है। मैत्रेयी पुष्पा प्रतिभा संपन्न उपन्यासकार रही हैं। इनके उपन्यास अपने सरोकारों में नारी संवेदना और यथार्थ की दिशा में महत्त्वपूर्ण आयाम खोले हैं। लेखिका ने नारी चरित्र के अंतर बाह्य रूप को मानवीय जीवन दृष्टि के आलोक में मानवोचित यथार्थ के धरातल पर परखा है। मैत्रेयी पुष्पा ने नारी की दुःख-दर्द, संताप, पीड़ा, संवेदना, रूढ़ व्यवस्था की दास्तान पुरानी परम्पराओं एवं शोषण की शिकार तथा उसकी जकड़न में कसमसाती हुई संवेदनशील नारी का यथार्थ अंकन अपने प्रमुख उपन्यासों में की है। भ्रष्ट प्रतिमानों की दासतां एवं पुरानी रूढ़ परम्पराओं, शोषण से मुक्ति का रास्ता तलाशती मुख्यतः ‘इदन्नमम्’ की मंदा, कुसुमा, प्रेमा तथा ‘बेतवा बहती रही’ की उर्वशी और ‘विजन’ की डाॅ॰ नेहा तथा डाॅ॰ आभा आदि नजर आती है। इन महिलाओं का पुरानी रूढि परम्पराओं एवं शारीरिक मानसिक शोषण तथा-कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष की गाथा को मैत्रेयी पुष्पा ने अपने उपन्यासों में बेबाकी से अंकन किया है। मैत्रेयी पुष्पा की नारी पात्र पुरातन से चली आ रही आदर्श प्रवृति ‘पुरुषों के अधीन रहना’ को उखाड़ फेंकती है। अपने जीवन में आये कटीलेदार रास्तों को पार करके आगे बढ़ती हुई दिखाई देती है। इतना ही नहीं मध्ययुगीन संस्कारों की खोज से बाहर आकर नए सिरे से नए तरीके से अपने और अपने आस-पास की परिवेश को समझना चाहती है। सदियों से लदी पुरुष प्रधान संस्कृति को विरोध कर अपने व्यक्तित्व के अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ती हुई दिखाती है। परंपरागत संस्कृति और साहित्य में वर्तमान विचारधारा से उत्पन्न परिवेशजन परिवर्तन को रेखांकित कर कथा साहित्य में नारी जीवन की अनुभूति और कल्पित पक्षों का क्रांतिकारी अभिव्यक्ति के कारण मैत्रेयी पुष्पा जी के उपन्यासों में नारी की संवेदना और यथार्थ दो मूलभूत पक्ष बनकर उभरे हैं।
Pages: 288-292  |  1194 Views  558 Downloads
How to cite this article:
संजय कुमार. मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में नारी संवेदना और यथार्थ. Int J Appl Res 2019;5(3):288-292.
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