Vol. 6, Issue 1, Part C (2020)
पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° हिनà¥à¤¦à¥€ नाटकों का विषय और शिलà¥à¤ª
पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° हिनà¥à¤¦à¥€ नाटकों का विषय और शिलà¥à¤ª
Author(s)
मà¥à¤•à¥‡à¤¶ कà¥à¤®à¤¾à¤° महतो
Abstract
नाटक-जयशंकर पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के बाद हिनà¥à¤¦à¥€ नाटक विषय-वसà¥à¤¤à¥ और शिलà¥à¤ª की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से और अधिक समृदà¥à¤§ हà¥à¤à¥¤ विषयगत वैविधà¥à¤¯ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से पौराणिक, à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤•, सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤•, सामाजिक, राजनीतिक और समसà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ नाटकों का सृजन हà¥à¤†à¥¤ यहाठतक आते-आते पौराणिक नाटकों की लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ में कमी आने लगी थी इसलिठइनकी संखà¥à¤¯à¤¾ में कमी à¤à¥€ आई। फिर à¤à¥€ कà¥à¤› नाटकों ने अपनी अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ छाप छोड़ी। इस यà¥à¤— के पौराणिक नाटकों में उदयशंकर à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ कृत ‘अमà¥à¤¬à¤¾’ और ‘सागर विजय’, सेठगोविनà¥à¤¦ दास कृत ‘कतà¥à¤°à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯’, चतà¥à¤°à¤¸à¥‡à¤¨ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ कृत ‘मेघनाद’, हरिकृषà¥à¤£ ‘पà¥à¤°à¥‡à¤®à¥€’ कृत ‘पाताल-विजय’, पाणà¥à¤¡à¥‡à¤¯ बेचन शरà¥à¤®à¤¾ ‘उगà¥à¤°’ कृत ‘गंगा का बेटा’, कैलाशनाथ à¤à¤Ÿà¤¨à¤¾à¤—र कृत ‘à¤à¥€à¤®à¤ªà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾’ और शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¤à¥à¤¸ तथा देवराज कृत ‘रावण’ उलà¥à¤²à¥‡à¤–नीय हैं। इन नाटकों की विशेषता यह है कि इनमें आधà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¤à¤¾ का à¤à¥€ समावेश किया गया है। ‘अमà¥à¤¬à¤¾’ का कथानक पौराणिक होते हà¥à¤ à¤à¥€ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• नारी समसà¥à¤¯à¤¾ को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करता है। सेठगोविनà¥à¤¦à¤¦à¤¾à¤¸ के ‘करà¥à¤£’ में जाति-पाà¤à¤¤à¤¿ की समसà¥à¤¯à¤¾ को उठाया गया है। कहने का तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯ यह है कि इन पौराणिक नाटकों में वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ जीवन की उन समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं को पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया गया है जो हमारे समाज के लिठगरà¥à¤¹à¤¿à¤¤ है। इसके लिठवà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• शैली अपनाई गई है ताकि समाज के अंधविशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ रूà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर पà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤° किया जा सके और मानव जीवन के बृहतà¥à¤¤à¤° मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤—मतापूरà¥à¤µà¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया जा सके।
How to cite this article:
मà¥à¤•à¥‡à¤¶ कà¥à¤®à¤¾à¤° महतो. पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤° हिनà¥à¤¦à¥€ नाटकों का विषय और शिलà¥à¤ª. Int J Appl Res 2020;6(1):186-188.