Vol. 6, Issue 1, Part D (2020)
‘कोहरा घना है' ग़ज़ल संगà¥à¤°à¤¹ में जनवादी चेतना की तलाश
‘कोहरा घना है' ग़ज़ल संगà¥à¤°à¤¹ में जनवादी चेतना की तलाश
Author(s)
डॉ० कृतारà¥à¤¥ शंकर पाठक
Abstractमिथिला अपनी जिन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤“ं और खूबियों के कारण वैदिक यà¥à¤— से चरà¥à¤šà¤¿à¤¤, पà¥à¤°à¤¶à¤‚सित à¤à¤µà¤‚ आदरणीय रही है, उन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤“ं और खूबियों की सà¥à¤¸à¤‚गठित वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ की कड़ी की à¤à¤• सशकà¥à¤¤ इकाई के रूप में, डॉ. बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¦à¥‡à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ कारà¥à¤¯à¥€ की पहचान, उन साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हो गई है, जिनकी अगà¥à¤°à¤œ पीà¥à¥€ के रूप में महान जनवादी साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° बाबा नागारà¥à¤œà¥à¤¨ आम पाठकों और नागरिकों के बीच अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¶à¤¤à¤¾à¤¬à¥à¤¦à¥€ पूरà¥à¤µ सà¥à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ कर चà¥à¤•à¥‡ हैं। डॉ॰ कारà¥à¤¯à¥€ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾, दूरदरà¥à¤¶à¤¨ के सीरियलों में अचानक पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ होनेवाले ‘शकà¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨; और ‘ही-मैन’ सरीखे पहलवानों की तरह नहीं है कि कà¥à¤·à¤£ में पà¥à¤°à¤•à¤Ÿ होकर असंà¤à¤µ को संà¤à¤µ कर, किसी बोतल में बनà¥à¤¦ अथवा अदृशà¥à¤¯ हो जाया करता है। डॉ॰ कारà¥à¤¯à¥€ की साहितà¥à¤¯à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾ à¥à¤¾à¤ˆ-दशक की साधनाओं का ही पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤«à¤²à¤¨ है, जिसके कारण पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤µà¤°à¥à¤· कम से कम à¤à¤• पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤•, वे पाठकों को देने के लिà¤, वरà¥à¤·à¥‹ पूरà¥à¤µ, वचनबदà¥à¤§ हो चà¥à¤•à¥‡ हैं, और आज à¤à¥€ अपने इस वचन को वे निà¤à¤¾ रहे हैं। इसी कड़ी में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ उनकी 54 ग़ज़लों के संगà¥à¤°à¤¹ ‘कोहरा घना है’ को शोध आलेख का विषय बनाया गया है।
साहितà¥à¤¯ समाज का दरà¥à¤ªà¤£ होता है। साहितà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤° जिस मातà¥à¤°à¤¾ में समाज को जीता और जागता है, उसी मातà¥à¤°à¤¾ में, समाज के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उस साहितà¥à¤¯ को गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया जाता है। डॉ॰ कारà¥à¤¯à¥€ समाज को निकट से जीने और à¤à¥‹à¤—ने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ ‘कोहरा घना है’ में किया है। अतà¤à¤µ सहजता से उनके उकà¥à¤¤ संगà¥à¤°à¤¹ में साहितà¥à¤¯ में जनवादी पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤—त हो जाती है।
How to cite this article:
डॉ० कृतारà¥à¤¥ शंकर पाठक. ‘कोहरा घना है' ग़ज़ल संगà¥à¤°à¤¹ में जनवादी चेतना की तलाश. Int J Appl Res 2020;6(1):290-292.