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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 6, Issue 2, Part E (2020)

नागार्जुन की औपन्यासिक कृतियों में नारी-पात्र

नागार्जुन की औपन्यासिक कृतियों में नारी-पात्र

Author(s)
डॉ. दिव्या निधि
Abstract
भारतीय समाज में नारी के विशिष्ट स्थान को नकारा नहीं जा सकता है। यही कारण है कि साहित्य में नारी का स्थान सर्वोपरि रहा है। भारतीय संस्कृति में प्राचीन समय से ही नारी पूजा के योग्य रही। ’’यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवताः’’ कहकर उपर्युक्त वक्तव्य की पुष्टि की जा सकती है। एक जनवादी लेखक होने के नाते पुरुष के साथ नारी की समानता बाबा नागार्जुन के मनो-मस्तिष्क में थी। मिथिला के समाज के नारी-चरित्रों के वर्णन के द्वारा नागार्जुन भारतीय स्त्रियों के मन के कोने में दमित पड़ी सूक्ष्म विलक्षण संवेदनाओं को कभी मौन और कभी मुखर होकर व्यक्त करते।
Pages: 372-375  |  652 Views  307 Downloads
How to cite this article:
डॉ. दिव्या निधि. नागार्जुन की औपन्यासिक कृतियों में नारी-पात्र. Int J Appl Res 2020;6(2):372-375.
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