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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 6, Issue 3, Part G (2020)

वेदों में वर्णित पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विचार

वेदों में वर्णित पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विचार

Author(s)
डॉ0 शिखर वासिनी
Abstract
पर्यावरण के अन्तर्गत भौतिक, सांस्कृतिक अथवा जैविक-अजैविक प्रभावशाली घटकों को सम्मिलित किया जाता है, जो जीव की दशाओं और कार्यों को प्रभावित करता है। वैदिक संस्कृति की आधारशिला है ‘यज्ञ‘। यह यज्ञ व्यक्तिगत स्तर पर भी किए जाते थे तथा सामाजिक स्तर पर भी। यज्ञ छोटे-बड़े अनेक प्रकार के थे। पर सामान्य जन के लिए ‘अग्निहोत्र करना अनिवार्य ही था। अग्नि में गाय के दूध से बना घी, गाय के गोबर के कण्डे (उपले) अथवा आम्रादि वृक्षों की समिधाएं तथा अन्य वानस्पतिक हवन सामग्री की आहुतियों से जो धुंआ होता था वह ऑक्सीजन और कार्बनडाइऑक्साइड में संतुलन रखने में समर्थ होता था तथा साथ ही कीटाणुओं को नष्ट करने में भी सहायक होता था। वायुमण्डल में प्रदूषण और प्रकृति के असंतुलन के कारण वर्तमान काल में ऋतुचक्र बहुत कुछ बदल गया है तथा अनिश्चित हो गया है। कहीं इतना हिमपात होता है कि जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। कहीं सूखा पड़ जाता है तो कहीं आती है बाढ़। ये सब प्राकृतिक विपतियां मनुष्य निर्मित हैं क्योंकि स्वयं मानव ने ही प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ा है। प्रकृति के असंतुलन ने ही ऋतुचक्र को बदला है जिससे जनसामान्य का जीवन भी प्रभावित हुआ है।यदि हम अपने धर्म एवं संस्कृति के नीति मानदण्डों को आज पुनः स्वीकार कर अरण्यक संस्कृति की नैतिकता व मार्गदर्शिका को संपूर्ण भूमण्डलीय आधुनिक मानवता को स्वीकार करवाने का संकल्प लें तो पर्यावरणीय नैतिकता की तकनीक ही पर्यावरण संरक्षण को विश्वव्यापी विकराल समस्या का समाधान कर सकती है।
Pages: 526-530  |  400 Views  139 Downloads
How to cite this article:
डॉ0 शिखर वासिनी. वेदों में वर्णित पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विचार. Int J Appl Res 2020;6(3):526-530.
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