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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 7, Issue 1, Part D (2021)

बाल–श्रमिकों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का अध्ययन : “राँची जिला के संदर्भ में”

बाल–श्रमिकों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का अध्ययन : “राँची जिला के संदर्भ में”

Author(s)
कल्पना कुमारी एवं डॉ सीमा डे
Abstract
भारत में बाल-श्रम समस्या एक चुनौती बन गई है | देश में कामकाजी बच्चों की वास्तविक संख्या बहुत ज्यादा है | जातिवाद, गरीबी, परिवार का आकार, तथा आय, शिक्षा का स्तर आदि बाल-श्रमिक को गम्भीर समस्या के रूप में प्रकट करने के लिए उत्तरदायी है | बाल- श्रम समस्या एक गहन सामाजिक-आर्थिक समस्या है | यह एक ऐसी बुराई है जिसके लिए समाज के सभी वर्गों में जागरूकता लाने के साथ-साथ सोच का नजरिया भी बदलने की जरुरत है | बाल मजदूरी करने वाले अधिकांश बच्चे पिछड़ी जातियों और पिछड़ों में भी अति पिछड़े वर्ग से आते हैं | इसका एक बड़ा कारण चेतना की कमी है | बच्चे देश के भविष्य होते हैं |
बाल-श्रम न सिर्फ बच्चों के लिए अभिशाप के समान है बल्कि यह समाज और देश के माथे पर कलंक है | भारत में बाल-श्रमिक समस्या अत्यन्त जटिल है लेकिन यह सिर्फ भारत की समस्या नहीं बल्कि एक अन्तर्राष्ट्रीय परिघटना है | इस शोध अध्ययन में राँची जिला से 100 बाल-मजदूरों को रैंडम रूप से चयनित किया गया था | इस अध्ययन में बाल-मजदूरों के व्यक्तिगत, गुण स्वतन्त्र चर है तथा अधिकांश 50 प्रतिशत बालिका तथा 40 प्रतिशत बालक 13-14 वर्ष के पाये गये उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति आश्रित चर हैं | अधिकांश 56 प्रतिशत बालिका तथा 50 प्रतिशत बालक निरक्षर थे जबकि 10 प्रतिशत बालिका तथा 4 प्रतिशत बालक हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त की थी | उत्तरदाताओं में 38 प्रतिशत बालक पिछड़ी जाति के थे जबकि 44 प्रतिशत बालिका अनुसूचित जनजाति की थी | अधिकांश 70 प्रतिशत बालक तथा 64 प्रतिशत बालिका एकल परिवार में रहते थे तथा उनके परिवार के स्वरूप में छ: या इससे अधिक सदस्यों वाले 60 प्रतिशत बालक तथा 64 प्रतिशत बालिका थी | अधिकांश लोग कच्चे मकान में रहते थे | पानी के साधन के रूप में वे कुआँ का प्रयोग करते थे | 74 प्रतिशत बालक 80 प्रतिशत बालिका को माता-पिता के साथ थोड़ा ही रहने का समय मिल पाता था | बच्चों के काम करने से उनकी पारिवारिक आय में वृद्धि हुई थी | अधिकत्तर लोग दैनिक आहार में केवल चावल सब्जी का ही प्रयोग करते थे | अधिकांश बालक तथा बालिका रेजा का काम कर अपने गुजारा करते थे | इनके परिवार के आय का मुख्य स्त्रोत मजदूरी ही था तथा इनके परिवार के मासिक आय 1501-4500 से नीचे थी | इनके दैनिक मजदूरी का आधार में 28 प्रतिशत बालक तथा 22 प्रतिशत बालिका को मालिक की इच्छा के अनुसार मजदूरी मिलती थी |
Pages: 247-252  |  1469 Views  726 Downloads
How to cite this article:
कल्पना कुमारी एवं डॉ सीमा डे. बाल–श्रमिकों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का अध्ययन : “राँची जिला के संदर्भ में”. Int J Appl Res 2021;7(1):247-252. DOI: 10.22271/allresearch.2021.v7.i1d.8186
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