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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 7, Issue 4, Part D (2021)

मुस्लिम छात्र-छात्राओं के शैक्षणिक विकास में मदरसों की भूमिका

मुस्लिम छात्र-छात्राओं के शैक्षणिक विकास में मदरसों की भूमिका

Author(s)
एस. एम. अली इमाम, डॉ. मुजम्मिल हसन
Abstract
मदरसा अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ विद्यालय होता है। भारत के मदरसों में दी जानेवाली शिक्षा पर समाज में कई तरह की गलतफहमियां फैलाई गयी हैं। कुछ लोग मदरसों को मुस्लिम समाज में दकियानूसी विचार को फैलाने का आरोप तक लगाते रहे हैं तो वहीं एक खास विचारधारा के लोगों द्वारा मदरसों को आतंकवाद का अड्डा तक बताया जाता रहा है। लेकिन सच्चाई कुछ और है। आज भी मदरसे मुस्लिम समाज में शिक्षा संस्कृति के प्रमुख केंद्र हैं। आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम समाज के बच्चों का कुछ हिस्सा अपनी प्राथमिक तालीम इन्हीं मदरसों में पाता है। मदरसा और स्कूल दोनों की शिक्षा एक ही है। अलग-अलग भाषाओं में कहने का अलग-अलग रिवाज है। जहाँ तक तालीम का संबंध है कुरान और हदीस की रोशनी में इल्म का एक ही मायने है शिक्षा। शिक्षा वह है जो लोगों को नफा पहुँचाये। इल्म ऐसा हो जो, एक तरफ नैतिक मूल्य को बढ़ाये, दूसरी तरफ समाज को रचनात्मक और सकारात्मक रूप से कुछ दे सके। पैगम्बर मोहम्मद जब इस दुनिया में आए तो कुरान की पहली आयत नाजिल हुई ‘ईकरा’, इसका संबंध पढ़ने से है। सनातन धर्म में, वेद 6 हजार साल पहले आए, उनमें इल्म पर विशेष जोर दिया गया है। लगभग सभी धार्मिक ग्रंथों में इल्म पर जोर दिया गया है। इल्म के बगैर इंसान के अंदर अख़लाक़ी क़दरें नहीं आ पाती हैं। वह प्राणावस्था में होते हुए भी जानवर की तरह होता है। जैसे जानवर खाते-पीते हैं, सोते हैं, प्रजनन करते हैं। शिक्षा इन्सानों को तहज़ीब देती है।
Pages: 263-267  |  242 Views  55 Downloads
How to cite this article:
एस. एम. अली इमाम, डॉ. मुजम्मिल हसन. मुस्लिम छात्र-छात्राओं के शैक्षणिक विकास में मदरसों की भूमिका. Int J Appl Res 2021;7(4):263-267.
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