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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 8, Issue 2, Part C (2022)

राष्ट्रोत्थान में सत्कार्यावदान

राष्ट्रोत्थान में सत्कार्यावदान

Author(s)
डॉ. अशोक कुमार दुबे
Abstract
राष्ट्र शब्द की व्यापकता सांस्कृतिक इकाई को आत्मसात किये हुए हैं। प्राचीन भारत में अत्यंत विकसित अनेक राज्य थे। इसका प्रमाण ऐतरेय ब्राह्मण के अध्ययनोपरान्त सुस्पष्ट हो जाता है। भारतवर्ष में राष्ट्र की परिकल्पना अति प्राचीन काल से पल्लवित-पुष्पित थी। राष्ट्र के उत्थान हेतु उस समय में सभी समर्पित रहते थे, किन्तु आधुनिक परिवेश में समय चक्र के साथ मानव-प्रवृत्ति में गम्भीर परिवर्तन दिखने लगे हैं। लोभवृत्ति -भोगवृत्ति के वशीभूत होकर मानव राष्ट्र उन्नयन के लिए अपने श्रेष्ठ आचरण को सुरक्षित नहीं रख पा रहा है। आत्मकेन्द्रित होकर भौतिक विकास की स्पर्धा में भारतीय लोकमानस राष्ट्र को विभ्रम में डाल रखा है। जबकि हमारे पर्थनिर्देशक ऋषियों ने सदैव उन्नतिकारक मूलमंत्र को बतलाया है। जिसमें राष्ट्रोन्नयल की आत्मा निवास करती है।
‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग भवेत्।।’’
Pages: 165-167  |  451 Views  90 Downloads


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How to cite this article:
डॉ. अशोक कुमार दुबे. राष्ट्रोत्थान में सत्कार्यावदान. Int J Appl Res 2022;8(2):165-167.
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