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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 8, Issue 4, Part F (2022)

'साये में धूप' में अभिव्यक्त दुष्यंत कुमार की काव्य चेतना

'साये में धूप' में अभिव्यक्त दुष्यंत कुमार की काव्य चेतना

Author(s)
रजनी
Abstract
नई कविता के प्रमुख हस्ताक्षर दुष्यंत कुमार ने समकालीन यथार्थ को, उसकी विसंगति, विद्रूपता और सत्ता के विरोधाभासी चरित्र को अभिव्यंजित करने के लिए ग़ज़ल को अधिक उपयुक्त और अपने अनुकूल पाया। उनका प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह 'साये में धूप' की काव्य चेतना जनता से जुड़ी हुई है। वह जनता जो आजादी के पश्चात् अपने अधिकारों से वंचित हो गई थी। जिसका आजादी से मोहभंग हो गया था तथा जिसके साथ सत्ताधारी वर्ग ने धोखा और छल किया था। अपनी इन ग़ज़लों के माध्यम से दुष्यंत कुमार आजाद भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की विडंबना, विसंगति और विरोधाभास को उजागर करते हैं तथा जनता की सुप्त संवेदनाओं को जागृत करते हैं। उसमें क्रांति का जोश पैदा करते हैं ताकि वह शोषण पर आधारित व्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंके। इसके लिए सबका मिलकर चलना अनिवार्य है। कवि दुष्यंत जहां शोषित जनता से सहानुभूति रखते हैं वहीं उसकी संवेदनहीनता और जड़ता पर व्यंग्य भी करते हैं। कह सकते हैं कि दुष्यंत कुमार की काव्य चेतना लोकतांत्रिक और मानवतावादी मूल्यों तथा समाजवादी दृष्टि से अनुस्यूत है।
Pages: 450-455  |  738 Views  121 Downloads


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How to cite this article:
रजनी. 'साये में धूप' में अभिव्यक्त दुष्यंत कुमार की काव्य चेतना. Int J Appl Res 2022;8(4):450-455.
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