Vol. 8, Issue 4, Part F (2022)
'साये में धूप' में अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ दà¥à¤·à¥à¤¯à¤‚त कà¥à¤®à¤¾à¤° की कावà¥à¤¯ चेतना
'साये में धूप' में अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ दà¥à¤·à¥à¤¯à¤‚त कà¥à¤®à¤¾à¤° की कावà¥à¤¯ चेतना
Author(s)
रजनी
Abstractनई कविता के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– हसà¥à¤¤à¤¾à¤•à¥à¤·à¤° दà¥à¤·à¥à¤¯à¤‚त कà¥à¤®à¤¾à¤° ने समकालीन यथारà¥à¤¥ को, उसकी विसंगति, विदà¥à¤°à¥‚पता और सतà¥à¤¤à¤¾ के विरोधाà¤à¤¾à¤¸à¥€ चरितà¥à¤° को अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤‚जित करने के लिठग़ज़ल को अधिक उपयà¥à¤•à¥à¤¤ और अपने अनà¥à¤•à¥‚ल पाया। उनका पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ ग़ज़ल संगà¥à¤°à¤¹ 'साये में धूप' की कावà¥à¤¯ चेतना जनता से जà¥à¤¡à¤¼à¥€ हà¥à¤ˆ है। वह जनता जो आजादी के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ अपने अधिकारों से वंचित हो गई थी। जिसका आजादी से मोहà¤à¤‚ग हो गया था तथा जिसके साथ सतà¥à¤¤à¤¾à¤§à¤¾à¤°à¥€ वरà¥à¤— ने धोखा और छल किया था। अपनी इन ग़ज़लों के माधà¥à¤¯à¤® से दà¥à¤·à¥à¤¯à¤‚त कà¥à¤®à¤¾à¤° आजाद à¤à¤¾à¤°à¤¤ की लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की विडंबना, विसंगति और विरोधाà¤à¤¾à¤¸ को उजागर करते हैं तथा जनता की सà¥à¤ªà¥à¤¤ संवेदनाओं को जागृत करते हैं। उसमें कà¥à¤°à¤¾à¤‚ति का जोश पैदा करते हैं ताकि वह शोषण पर आधारित वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ को जड़ से उखाड़ फेंके। इसके लिठसबका मिलकर चलना अनिवारà¥à¤¯ है। कवि दà¥à¤·à¥à¤¯à¤‚त जहां शोषित जनता से सहानà¥à¤à¥‚ति रखते हैं वहीं उसकी संवेदनहीनता और जड़ता पर वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯ à¤à¥€ करते हैं। कह सकते हैं कि दà¥à¤·à¥à¤¯à¤‚त कà¥à¤®à¤¾à¤° की कावà¥à¤¯ चेतना लोकतांतà¥à¤°à¤¿à¤• और मानवतावादी मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ तथा समाजवादी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से अनà¥à¤¸à¥à¤¯à¥‚त है।
How to cite this article:
रजनी. 'साये में धूप' में अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ दà¥à¤·à¥à¤¯à¤‚त कà¥à¤®à¤¾à¤° की कावà¥à¤¯ चेतना. Int J Appl Res 2022;8(4):450-455.