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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Vol. 9, Issue 1, Part F (2023)

विश्व का तोरण-द्वार है-हिन्दी

विश्व का तोरण-द्वार है-हिन्दी

Author(s)
खुशबू कुमारी
Abstract
स्वागत हर आगत का करता, बनकर प्रेम-बहार।
सिद्ध हो चुकी हिन्दी भाषा, वैश्विक तोरण-द्वार।।
वैश्विक तोरण-द्वार, हिन्दी है वैज्ञानिक भाषा।
कर रही है पूरा, हिन्दी दुनिया की हर आशा।।
कह खुशबू ख्वाहिशा, जग है हिन्दी-पथ अभ्यागत।
करती है इसलिए, हिन्दी दुनिया भर का स्वागत।।1
मुख्य से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है-भाषा, जिसके द्वारा मन की बात बताई जाती है।2 हिन्दी भी भाषा है। हिन्दी भाषा विज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय शाखा की एक ऐसी भाषा है, जिसकी ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखण्डी, मागधी और मैथिली-भोजपुरी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत, पालि और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं हिन्दी आदि का विकास हुआ है।
संस्कृताधारित हिन्दी के तमाम वर्गों की उत्पत्ति माहेश्वर-सूत्र3 से सिद्ध है, जिसके कारण हिन्दी के अक्षर मंत्रों की हैसियत रखते हैं। इसी भाषा से मर्यादित भारतवर्ष स्वर्ण-खग की संज्ञा से भी विश्व में विख्यात रहा, जिसे देखने, सीखने और लूटने की ललक से भी विदेशियों का आगमन भातवर्ष में होता रहा और हिन्दी वैश्विक तोरण-द्वार बनकर प्रत्येक आगत का स्वागत हृदय खोलकर करती रही, जिसके कारण विद्वानों ने हिन्दी को तोरण-द्वार भी कहना शुरू कर दिया।
Pages: 425-426  |  355 Views  111 Downloads


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How to cite this article:
खुशबू कुमारी. विश्व का तोरण-द्वार है-हिन्दी. Int J Appl Res 2023;9(1):425-426.
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