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International Journal of Applied Research
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Peer Reviewed Journal

Vol. 9, Issue 11, Part C (2023)

ग्रीष्म और ग्राम्य गीत

ग्रीष्म और ग्राम्य गीत

Author(s)
डाॅ0 विमलेन्दु कुमार विमल
Abstract
लोक भावनाओं से जुड़ी लोक भाषा में प्रचलित या लिखित साहित्य को लोक-साहित्य की संज्ञा दी जाती है। इसकी परम्परा उतनी ही पुरानी है जितना प्राचीन सृष्टि का विकास।
ग्राम्य गीतों में हृदय की सहज अनुभूतियाँ सजीव भाषा में मार्मिक ढ़ंग से रागात्मक रूप में व्यंजित होती हैग्रीष्म ऋतु मुख्यतः तीन महीने ही प्रकृति के हृदय-पटल पर अपनी विकरालता के लिए विख्यात है-चैत, वैषाख और जेठ।
चैत मास में गोरी का चित चंचल और यौवन उसे भार-सा लगने लगा है। भले ही वैषाख के तप्त अंगारों की बौछार से उसका षरीर पानी-सा होकर खलबलाने हीं क्यों ना लगे? लेकिन, वह अपने प्रियतम के बिना अपने ष्षरीर पर चंदन का लेप नहीं चढ़ायेगी।
Pages: 171-173  |  350 Views  114 Downloads


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How to cite this article:
डाॅ0 विमलेन्दु कुमार विमल. ग्रीष्म और ग्राम्य गीत. Int J Appl Res 2023;9(11):171-173.
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