स्वातंत्र्योत्तर भारतीय उपन्यासों में चित्रित प्रेम संबंधों में विद्रोह के विविध आयाम आधुनिक समाज में स्त्री-पुरुष के अस्तित्व, अधिकार, स्वतंत्रता और अस्मिता की बदलती चेतना का दर्पण हैं। इन उपन्यासों में महिला पात्र पारंपरिक सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक बंधनों के विरुद्ध प्रेम, विवाह, यौन संबंध, और अपनी इच्छा पूर्ति के लिए विद्रोह करती दिखाई देती हैं। वे धर्म, जाति, दहेज, विवाहबाह्य संबंध, और परिवार की रूढ़िवादी सोच के विरोध में अपने निर्णय स्वयं लेने की क्षमता अर्जित करती हैं।
‘मित्रो मरजानी’, ‘नावें’, ‘बात एक औरत की’, ‘कठगुलाब’, ‘नरक-दर-नरक’, ‘इदन्नमम्’ जैसे उपन्यासों में नारी पात्रों का यह विद्रोही स्वर स्त्री अस्मिता, आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता के नए प्रतिमान गढ़ता है। वे पति, प्रेमी, माता-पिता, परिवार, धर्म और समाज की स्थापित परंपराओं एवं मान्यताओं का साहसपूर्वक विरोध कर अपने प्रेम संबंधों में समानता, स्वतंत्रता और पारदर्शिता की माँग करती हैं।
इस शोध आलेख में इन उपन्यासों के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि आधुनिक स्त्री अबला नहीं, बल्कि सबला, आत्मनिर्भर और अपने अस्तित्व के लिए सतत संघर्षरत है। उसका विद्रोह केवल व्यक्तिगत या पारिवारिक नहीं, बल्कि समग्र सामाजिक, सांस्कृतिक और वैचारिक बदलाव का वाहक बन गया है। आधुनिक महिला उपन्यासकारों की रचनाओं ने हिंदी साहित्य को सामाजिक बदलाव, लैंगिक न्याय और मानवीय अधिकारों के प्रश्नों पर विमर्श का नया आयाम प्रदान किया है। इस प्रकार, स्वातंत्र्योत्तर उपन्यासों में स्त्री के प्रेम संबंधों में विद्रोह नारी स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय और समता की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।