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International Journal of Applied Research
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Vol. 9, Issue 7, Part C (2023)

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद - पं0 दीनदयाल उपाध्याय का विचार दर्शन

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद - पं0 दीनदयाल उपाध्याय का विचार दर्शन

Author(s)
मोहित सिंह रौतेला
Abstract
मुख्यतः किसी एक व्यक्ति के मूल में उसके जैविक अस्तित्व में उसको समेटे हुए उसका एक चेतन अस्तित्व भी अवश्य होता है। जो उसे सकारात्मकता के साथ ऊर्जा संसार में भी मदद करता है। ठीक उसी तरह किसी राष्ट्र मानव समुदाय का भी एक चेतन अस्तित्व होता है। इसी अस्तित्व को परिभाषित करते हुए पं0 दीनदयाल उपाध्याय ने नया विचार प्रस्तुत किया। जिसे उन्हांेने एकात्म-मानववाद का नया नाम दिया। और इसी में उन्होंने राष्ट्र की चिति को भी सन्दर्भित कर व्याख्यायित किया। जिस प्रकार यदि व्यक्ति के मूल स्वभाव के साथ छेड़छाड़ की जाय तो वह चिड़चिड़ा एंव मनोविकार से ग्रस्त हो जाएगा। ठीक उसी प्रकार किसी राष्ट्र की नीति, संस्कृति,रीति, चिति एंव विभिन्न आंतरिक जीवन में पक्षों के साथ समझौता किया जाए तो वह राष्ट्र भी खामियों से ग्रस्त हो जाएगा और ऐसा राष्ट्र बीमारू राष्ट्र कहलाएगा। अपनी दूर दृष्टिता से पं0 दीनदयाल उपाध्याय जी ने इस बात को बेहद बारीकी व संजीदगी से देखा व आंकलन किया तब जाकर भारत की चिति अर्थात् धर्म निष्ठ और धर्म-धिष्ठित राष्ट्रीय जीवन की पैरोकारी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में की। वे भारत की राजनीतिक व्यवस्था का गठन और संचालन धार्मिक मूल्यों पर आधारित व पोषित करना चाहते थे। इन सब का समग्र मेल व सांमजस्य सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में खोजना चाहते थे। मुख्यतः किसी एक व्यक्ति के मूल में उसके जैविक अस्तित्व में उसको समेटे हुए उसका एक चेतन अस्तित्व भी अवश्य होता है। जो उसे सकारात्मकता के साथ ऊर्जा संसार में भी मदद करता है। ठीक उसी तरह किसी राष्ट्र मानव समुदाय का भी एक चेतन अस्तित्व होता है। इसी अस्तित्व को परिभाषित करते हुए पं0 दीनदयाल उपाध्याय ने नया विचार प्रस्तुत किया। जिसे उन्हांेने एकात्म-मानववाद का नया नाम दिया। और इसी में उन्होंने राष्ट्र की चिति को भी सन्दर्भित कर व्याख्यायित किया। जिस प्रकार यदि व्यक्ति के मूल स्वभाव के साथ छेड़छाड़ की जाय तो वह चिड़चिड़ा एंव मनोविकार से ग्रस्त हो जाएगा। ठीक उसी प्रकार किसी राष्ट्र की नीति, संस्कृति,रीति, चिति एंव विभिन्न आंतरिक जीवन में पक्षों के साथ समझौता किया जाए तो वह राष्ट्र भी खामियों से ग्रस्त हो जाएगा और ऐसा राष्ट्र बीमारू राष्ट्र कहलाएगा। अपनी दूर दृष्टिता से पं0 दीनदयाल उपाध्याय जी ने इस बात को बेहद बारीकी व संजीदगी से देखा व आंकलन किया तब जाकर भारत की चिति अर्थात् धर्म निष्ठ और धर्म-धिष्ठित राष्ट्रीय जीवन की पैरोकारी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में की। वे भारत की राजनीतिक व्यवस्था का गठन और संचालन धार्मिक मूल्यों पर आधारित व पोषित करना चाहते थे। इन सब का समग्र मेल व सांमजस्य सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में खोजना चाहते थे।
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How to cite this article:
मोहित सिंह रौतेला. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद - पं0 दीनदयाल उपाध्याय का विचार दर्शन. Int J Appl Res 2023;9(7):182-184.
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