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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 9, Issue 8, Part C (2023)

पारम्परिक लोक कलाओं का तात्विक विवेचन

पारम्परिक लोक कलाओं का तात्विक विवेचन

Author(s)
डाॅ. अचल अरविन्द
Abstract
कला का मानव जीवन में बहुत महत्व है, किन्तु दुर्भाग्य से हम उसे नहीं समझते हैं या नजर अन्दाज करते हैं। आज कला को बहुत ही सीमित अर्थों में समझा जा रहा हैं। शायद इसीलिये पारम्परिक कला के समग्र और विस्तृत रूप को समझने में कठिनाई महसूस होती है। परम्परा का अर्थ है निरन्तरता तथा परिवर्तन हमें जो कुछ विरासत में प्राप्त हुआ है उसमें से जो कुछ भी वर्तमान के संदर्भ में प्रासंगिक है, वही ग्रहण किया जाता है। अतः परम्परा का सदैव मूल्यांकन होता रहता है। यह किसी जाति में नवीन जीवनी शक्ति एवं नयी उमंग भरती है। सांस्कृतिक जीवन में केवल परम्परा और निरन्तरता ही नहीं, नवीनता का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इस परिचर्चा मेें पारम्परिक कला पर बहुत अधिक विस्तार से प्रकाश डालने की आवश्यकता हैं अर्थात अनुसंधान करके विश्लेषण करने की आवश्यकता हैं। पारम्परिक कलाओं का सांस्कृतिक मूल्य भी है क्योंकि अब यह हमारी सामाजिक परम्परा का एक आवश्यक अंग है, इसका अपना ही एक महत्व है जो अपेक्षाकृत अधिक मानवीय विषयों से किसी भी तरह कम प्रभावशाली नहीं है। कला की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन से प्राप्त ज्ञान हम में बुद्धि, आलोचनात्मक निर्णय शक्ति तथा वैज्ञानिक गठन की योग्यता का विकास करता है। कुशल पारम्परिक कलाकार परिश्रमी, सहनशील व साहसी होते थे, उन कलाकारों का जीवन इतिहास ऐसे दृष्टांतो से भरा हुआ था। जैसे-जैसे सामाजिक जीवन जटिल होता जा रहा है वैसे वैसे मनुष्य पारम्परिक कलाओं की ओर उन्मुख होता जा रहा है और यही अनुसंधान का विषय भी है।
मनुष्य का और अधिक सुसभ्य एवं समृद्ध होने का एक मात्र कारण कला में नवीनतम प्रयासांे का अध्ययन करना होता है वैयक्तिक अध्ययन की यह आधारभूत मान्यता है कि मानव व्यवहार की मौलिक प्रवृति व स्वभाव कला के पक्ष में निहित होती है।
Pages: 172-175  |  391 Views  118 Downloads


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How to cite this article:
डाॅ. अचल अरविन्द. पारम्परिक लोक कलाओं का तात्विक विवेचन. Int J Appl Res 2023;9(8):172-175.
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