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Vol. 10, Issue 1, Part C (2024)

मोहन राकेश के नाटकों में स्त्री-पुरूष के बदलते संबंध

मोहन राकेश के नाटकों में स्त्री-पुरूष के बदलते संबंध

Author(s)
मीरा कश्यप
Abstract
रचनाकार अपनी रचनात्मकता की अभिव्यक्ति के लिए कई माध्यमों का चयन करता है, अभिव्यक्ति के अलग-अलग माध्यमों के बावजूद वह अपनी मूल प्रकृति से अलग नहीं होता। मोहन राकेश की कहानियों, उपन्यास व नाटकों का समग्र अध्ययन करने पर यह तथ्य स्वतः स्पष्ट हो जाता है, मोहन राकेश ऐसे रचनाकार हैं, जो कहानी की गरिमा उपन्यास के गठन तथा नाटक की क्षमता व सीमा के अनुरूप लेखकीय उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हैं।
अपने नाटकों के द्वारा मोहन राकेश ने रंगमंचीय कौशल को उन्नत बनाया, इसीलिए उन्हें रंगशिल्पी स्वीकार करने का अपना औचित्य है। वे हिन्दी के श्रेष्ठ नाटककारों में से एक हैं, उन्होंने शिल्प और कथ्य के धरातल पर नये प्रगतिशील आकर्षक नाटक लिखे, जिसके काव्यात्व रंगमंच की आभा के समक्ष इनके नाटक कहीं भी फीके नहीं पड़े, जगदीश चन्द्र माथुर के पश्चात मोहन राकेश शायद प्रथम ऐसे नाटककार प्रमाणित होते हैं, जिन्होंने कथ्य को दृश्यत्व प्रदान करने की आवश्यकता और अनिवार्यता समझी, इन्होंने परम्परा से हटकर एकदम परे नये शिल्प, शैली और भावबोध के नाटक प्रस्तुत किए थे।
Pages: 212-214  |  805 Views  546 Downloads


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How to cite this article:
मीरा कश्यप. मोहन राकेश के नाटकों में स्त्री-पुरूष के बदलते संबंध. Int J Appl Res 2024;10(1):212-214.
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