Vol. 10, Issue 11, Part A (2024)
मणि मधुकर के ‘पत्तों की बिरादरी’ उपन्यास में अकाल विभीषिका
मणि मधुकर के ‘पत्तों की बिरादरी’ उपन्यास में अकाल विभीषिका
Author(s)
दिनेश कुमावत, राजेंद्र सिंह
Abstract
मरुजीवन के कुशल चितेरे मणि मधुकर का नाम हिन्दी साहित्य के अधुनातन बहुचर्चित हस्ताक्षरों में से हैं। उनका सम्पूर्ण साहित्य राजस्थान के मरुस्थलीय परिवेश तथा जनजीवन की सशक्त अभिव्यक्ति है। “पत्तों की बिरादरी” उपन्यास में राजस्थान के पश्चिमी एवं सीमावर्ती क्षेत्र में धूल-धूसरित लोगों की छवियों को जीवंतता से उकेरा है। अकाल से पीड़ित उजड़ते-बसते लोगों का सहायतार्थ शिविरों कैंपों में रोटी-पानी की तलाश में जैसे तैसे प्रवेश लेना। पूरे दिन भयंकर गर्मी में उनकी मेहनत के पसीने से फलते-फूलते चंद शक्तिशाली लोगों की अमानवीयता का चित्रण किया है। सहायता कैंपों की आड़ में गरीबो, कमज़ोरों तथा स्त्रियों के शोषण का बड़ी बारीकी से वर्णन किया है। इसी क्रम में सरकारी प्रशासन, राजनेताओं, कथित समाजसेविका आदि पूँजीवादी व्यवस्था के पोषकों द्वारा किए गये शोषण का पर्दाफ़ाश भी किया है। अंत में श्रम शक्ति संगठित होती है और शोषक वर्ग का सशक्त प्रतिरोध करती है। पत्तों की ‘बिरादरी’ प्रकृतिजन्य सूखे एवं अकाल से बिखर जाती है वहीं दूसरी ओर प्रकृति की ठंडी बोछारों से पुनः जीवन संजीवनी प्राप्त करती है। सम्पूर्ण उपन्यास में प्रकृतिजन्य सूखे का अकाल में रूपांतरण तथा अकाल से जनित समस्याओं जैसे भुखमरी, अनाज का अभाव, पानी की कमी,पलायन तथा अकाल मृत्यु आदि का बड़े ही मार्मिक एवं सूक्ष्म संवेदनात्मक स्तर पर चित्रण किया है। अकाल की भयावहता को पाठकों तक पहुँचाने में यह एक सफल उपन्यास माना जा सकता है।
How to cite this article:
दिनेश कुमावत, राजेंद्र सिंह. मणि मधुकर के ‘पत्तों की बिरादरी’ उपन्यास में अकाल विभीषिका. Int J Appl Res 2024;10(11):27-31.