Vol. 10, Issue 11, Part B (2024)
शैलेन्द्र मोहन झाक उपन्यास: एक विश्लेषण
शैलेन्द्र मोहन झाक उपन्यास: एक विश्लेषण
Author(s)
डाॅ0 उमा शंकर दिक्षित
Abstractशैलेन्द्र मोहन झा जाहि समय अपन उपन्यासक लेखन आरम्भ कएलनि ओ समय ब्राह्मण समाजक बीच चलैत वैवाहिक समस्याक समय छल। ई समस्या विभिन्न प्रकारक रहैक। कन्या पिताक अधीन लाचार छलीह। नेनपनसँ बूढ़ धरिक संरक्षण हुनका लाचार कएने छलनि। नेनपनसँ वैवाहिक बंधनमे बंधबाक अवधि धरि पिताक वर्चस्व, वैवाहिक बंधन मे बंधि गेलाक बाद पतिक अधीन आ वृद्ध भेला पर पुत्रक अधिकारमे हुनक जीवन बंधक लागल छल। परिणामतः हुनक अभिलाषा पिजड़ामे बंद कोनो सुग्गा सदृश छटपटाइत रहैत छल ताहि समयमे प्रेम कथा लिखब एक दुरूह काज छल। सर्वप्रथम शैलेन्द्रमोहन झा ‘प्रतिमा’ उपन्यास लिखलनि मुदा ओ पाठक वर्गक बीच कोनो छाप नहि छोड़ि सकल। तदुपरांत ओ पुनः साहस कए ‘मधुश्रावणी’ उपन्यास लिखलनि मुदा ओहो उपन्यास सामाजिक विरोध करैत डेराइते। परिणामतः उपन्यास चर्चित तऽ भेल मुदा तत्कालीन समयमे लिखल गेल यात्रीक ‘पारोक’ समकक्ष नहि पहुँच सकल। ओ आदर्शवादी प्रेमगाथा बनि रहि गेल। जखन कि उपन्यास प्रेमी-प्रेमिकाक मनोविज्ञानकँ¢ प्रकट करबामे कत्तौ पाछू नहि अछि मुदा लेखकक शालीनता विद्रोहकँ¢ स्वीकार नहि कऽ सकल जकर परिणाम थिक ‘मधुश्रावणी’।
How to cite this article:
डाॅ0 उमा शंकर दिक्षित. शैलेन्द्र मोहन झाक उपन्यास: एक विश्लेषण. Int J Appl Res 2024;10(11):80-82.