Vol. 10, Issue 11, Part F (2024)
आदिवासी साहित्य विमर्श: अवधारणा और स्वरूप
आदिवासी साहित्य विमर्श: अवधारणा और स्वरूप
Author(s)
मनीष कुमार मीना
Abstract
आदिवासी साहित्य वह साहित्य है जो आदिवासी समाज, संस्कृति, परंपराओं, संघर्षों और उनके जीवन-दर्शन को उनकी अपनी दृष्टि से अभिव्यक्त करता है। यह साहित्य मुख्यधारा की मान्यताओं से अलग, आदिवासी अनुभवों और चिंतन को केंद्र में रखता है।आधुनिक विमर्शों में आदिवासी साहित्य न केवल अस्मिता की तलाश का विषय है, बल्कि इसमें राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विमर्श भी समाहित हैं। हालाँकि, गैर-आदिवासी रचनाकार भी आदिवासी विषयों पर लेखन कर रहे हैं, किंतु उनकी रचनाओं में आदिवासी दर्शन और मूल्यों की सही समझ का अभाव देखा जाता है। यह साहित्य कई बार बाहरी दृष्टिकोण से लिखा जाता है, जिससे आदिवासी जीवन की विकृत या भ्रामक छवि प्रस्तुत होने का खतरा रहता है। आदिवासी साहित्य को समझने के लिए उसकी समृद्ध वाचिक परंपरा को स्वीकारना आवश्यक है। यह साहित्य किसी शास्त्रीय ढांचे में बंधा नहीं होता, बल्कि अनुभवजन्य होता है। आदिवासी साहित्य मात्र सौंदर्यबोध या स्वांतः सुखाय लेखन नहीं है, बल्कि यह प्रतिबद्ध साहित्य है, जो बदलाव और संघर्ष की चेतना से प्रेरित है।
How to cite this article:
मनीष कुमार मीना. आदिवासी साहित्य विमर्श: अवधारणा और स्वरूप. Int J Appl Res 2024;10(11):395-398.