Abstractयोग मन और शरीर को स्वस्थ रखने की एक प्राचीन पद्धति है। भारतीय ज्ञान परम्परा में योग का बहुत महत्व है। प्राचीनकाल से ही योग हमारी जीवन शैली में समाहित रहा है। योग स्वस्थ जीवन जीने की कला है जो मन एवं शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। योग अनुशासन का भी विज्ञान है जो शरीर, मन तथा आत्मशक्ति का सर्वांगीण विकास करता है। आज स्वस्थ एवं चुस्त-दुरुस्त रहने की दृष्टि से योग, सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है अतः समाज में योग शिक्षा महत्वपूर्ण है।
इस शोध पत्र में शोधकर्ता मुक्त विश्वविद्यालय एवं परम्परागत विश्वविद्यालय में अध्ययनरत बी.एड. (बैचलर ऑफ एजुकेशन) प्रशिक्षणार्थियों की योग शिक्षा के प्रति अभिवृत्ति का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसमें यह समझने का प्रयास किया गया है कि इन दोनों प्रकार के विश्वविद्यालयों के प्रशिक्षणार्थियों की योग शिक्षा के प्रति दृष्टि, स्वीकृति और अनुभव में क्या समानताएँ और भिन्नताएँ हैं।
शोध के परिणामों से पता चलता है कि परम्परागत विश्वविद्यालयों के प्रशिक्षणार्थियों में योग शिक्षा के प्रति अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण देखा गया, जबकि मुक्त विश्वविद्यालय के छात्रों ने इसे स्व-अनुशासन और समय प्रबंधन के संदर्भ में अधिक उपयोगी माना।
शोध में यह भी सामने आया कि प्रशिक्षणार्थियों की योग शिक्षा के प्रति रुचि उनके व्यक्तिगत अनुभवों, सामाजिक परिवेश और शिक्षा प्रणाली की संरचना पर निर्भर करती है। दोनों विश्वविद्यालयों के छात्रों ने योग को मानसिक तनाव कम करने, शारीरिक स्वास्थ्य सुधारने और पेशेवर जीवन में एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण माना।
अंत में यह निष्कर्ष निकाला गया कि योग शिक्षा को बी.एड. पाठ्यक्रम में अधिक प्रभावी ढंग से सम्मिलित करने के लिए नीतिगत सुधार और व्यावहारिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है, जिससे सभी प्रकार के प्रशिक्षणार्थी इसका अधिकतम लाभ उठा सकें। शोध पत्र शिक्षा के क्षेत्र में योग की भूमिका को मजबूत करने और भविष्य में और अधिक विस्तृत शोध की संभावनाओं का सुझाव देता है।