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International Journal of Applied Research
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Peer Reviewed Journal

Vol. 11, Issue 2, Part B (2025)

मणि मधुकर के ‘पत्तों की बिरादरी’ उपन्यास में चित्रित राजस्थानी लोकजीवन

मणि मधुकर के ‘पत्तों की बिरादरी’ उपन्यास में चित्रित राजस्थानी लोकजीवन

Author(s)
नारायण सिंह
Abstract
‘पत्तों की बिरादरी’ मणि मधुकर द्वारा रचित उपन्यास है। जिसका प्रकाशन सन् 1979 में वाणी प्रकाशन नई दिल्ली से हुआ है। मणि मधुकर राजस्थान के प्रमुख लेखकों में अपना स्थान रखते हैं। जिन्होंने पूरी प्रमाणिकता के साथ राजस्थान की माटी में रचे-बसे जीवन को अपनी लेखनी से जीवंत किया है। ‘पत्तों की बिरादरी’ उपन्यास उनकी इस प्रमाणिक लेखन कुशलता का एक उदाहरण है। राजस्थान के पश्चिमी भू-भाग के सूखे में जीवन संघर्ष करते जीवन को शब्दों के माध्यम से साकार करने का कार्य मणि मधुकर की कलम ने बहुत कुशलता से किया है। ‘पत्तों की बिरादरी’ उपन्यास में मणि मधुकर ने राजस्थान के पश्चिमी सीमावर्ती इलाके के दुर्गम एवं कठिन जीवन जीते हुए चरित्रों को उकेरा है। पश्चिमी राजस्थान में एक तरफ जहाँ सूखे का प्रकोप होता है वहीं, खाने-पीने की कमी बनी रहती है। सीमावर्ती भाग होने के कारण से सदैव बंदूकों का साया बना रहता है। इन सब संघर्षों के मध्य लूट मचाते अपराधी प्रवृत्ति के शोषकों का अत्याचार, इस सारे संघर्ष को ओर ज्यादा मार्मिक बना देता है। जीवन संघर्ष के चलते उजड़ना-बसना मानव जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी ही कही जाएगी, उपन्यासकार के शब्दों में,‘‘ एक भरा-पूरा दरख्त होता है और उसमें पत्ते रहते हैं। पत्ते क्या होते हैं, दरख्त के लिए? दरख्त एक ढाणी है, एक गाँव है और पत्ते उसके बाशिंदे होते हैं। साथ बोलते हुए, एक-सा जीवन जीते हुए वे एक ही बिरादरी के अनेक लोग! लेकिन ऋतुओं की मार से जब पेड़ उजड़ने लगता है तो पत्ते सूख-सूखकर गिरने और बिखरने लगते हैं। अपने गाँव-घर को छोड़-कर, दुःख-दैन्य के बोझ को ढोते हुए, वे पत्ते जाने कहाँ-कहाँ तक रेलों में बहते-उड़ते चले जाते हैं। यही है पत्तों की बिरादरी!’’1
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How to cite this article:
नारायण सिंह. मणि मधुकर के ‘पत्तों की बिरादरी’ उपन्यास में चित्रित राजस्थानी लोकजीवन . Int J Appl Res 2025;11(2):118-121. DOI: 10.22271/allresearch.2025.v11.i2b.12347
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