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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 11, Issue 4, Part E (2025)

प्राचीन भारत में गणित का सर्वप्रथम विकास और योगदान का विश्लेषण

प्राचीन भारत में गणित का सर्वप्रथम विकास और योगदान का विश्लेषण

Author(s)
हीतेश्वर सिंह, धनंजय कुमार मिश्रा
Abstract
गणित शब्द गण और प्रत्यय क्त से मिलकर बना है । जिसका मतलब गिनना होता है । भारत के पुराने निवासी आर्य धार्मिक सोच और विचार के लोग थे, उन्होंने धार्मिक विचार धारा को गणित से जोड़ा। भारतीय गणितज्ञ ने खगोलीय गणना का खोज किया, बाद में जिसको पूरे दुनिया ने अपनाया । बहुचर्चित नंबर पद्धति, शून्य और दशमलव भारतीय गणित और गणितज्ञों का बहुत ही महत्वपूर्ण देन है । बौदहायन प्रमेय, पायथागोरस प्रमेय से लगभग ५०० वर्ष पहले भारतीय गणितज्ञ बौदहायन द्वारा दिया गया। ग्रीक लोगों को चौथी सदी तक मैरायड(१०) और रोमवासियों को पाँचवीं सदी तक मिली (१०) जैसी बड़ी संख्याओं का ही ज्ञान था, जबकि भारतीय गणितज्ञों और भारतीयों मुनियों को उससे कहीं काफी आगे संख्याओं का ज्ञान था। जैसे तलक्षणा - १ ० ५३, महौघ – १० ६० एवं असंख्येय – १० १४० जैसी बृहद संख्याओं का ज्ञान था। जब विश्व १००० जनता था तब, भारतवर्ष अनंत, खोजा। शून्य और अनंत का सांकेतिक चिन्ह ॐ से मिलता है। भारत में रेखागणित का शुरुआत यज्ञवेदिकाओं के विभिन्न आकारों, के मापन के आधार पर किया गया। मापन में शुल्ब इतनी महत्वपूर्ण थी कि, रेखागणित को शुल्ब शास्त्र कहा जाने लगा ।इसप्रकारयह भी कहना गलत नहीं होगा कि, शुल्ब-गणित या शुल्ब-विज्ञान ही विश्व की रेखागणित का प्रथम रूप है। संचार, सूचना के अभाव में भारतीय गणित अपनी सही पहचान सही समय पर नहीं बना सकी और इसका श्रेय अन्य देशों ने ले लिया ।
Pages: 334-336  |  90 Views  51 Downloads


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How to cite this article:
हीतेश्वर सिंह, धनंजय कुमार मिश्रा. प्राचीन भारत में गणित का सर्वप्रथम विकास और योगदान का विश्लेषण. Int J Appl Res 2025;11(4):334-336. DOI: 10.22271/allresearch.2025.v11.i4e.12503
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