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International Journal of Applied Research
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ISSN Print: 2394-7500, ISSN Online: 2394-5869, CODEN: IJARPF

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Peer Reviewed Journal

Vol. 11, Issue 5, Part G (2025)

प्राचीनकालीन नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय में ज्ञान परंपरा और बौद्ध धर्म का प्रभाव: एक ऐतिहासिक अध्ययन

प्राचीनकालीन नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय में ज्ञान परंपरा और बौद्ध धर्म का प्रभाव: एक ऐतिहासिक अध्ययन

Author(s)
रवि शंकर और दीपक शर्मा
Abstract
ॐ सह नौ अवतु, सह नौ भुनुक्तु, सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नौ अधीतमस्तु, मा विद्विषावहै।।1
अर्थः-हम दोनों परस्पर एक-दूसरे की रक्षा करें, विद्या प्रसाद को मिलकर उपभोग करें, परस्पर मिलकर अविद्यान्धकार को दूर करने का प्रयत्न करें, हम दोनों द्वारा अधिगत विद्या तेजस्विनी हो और हम दोनों परस्पर कभी किसी प्रकार से द्वेष न करें ।
उपरोक्त श्रुतिवाक्य भारत की समृद्ध ज्ञान परंपरा का एक उपयुक्त परिचायक है। धर्म, तर्कशास्त्र, व्याकरण, विज्ञान और चिकित्सा की शिक्षा प्रदान करने वाले ऐसे ही प्राचीन भारत में दो महत्वपूर्ण केन्द्र नालंदा तथा विक्रमशिला महाविहार थे। इतिहास-स्त्रोतो और विदेशी यात्रियों के यात्रा वृत्तान्तों में वर्णन है, कि इन दोनो विश्वविद्यालयों में भारत हीं नहीं, वरन् सुदूरवर्ती श्याम, अनाम, सिंहल, चीन, जापान, तातार, मध्य-एशिया, तिब्बत, बर्मा, मलय आदि अनेक देशों से विद्यार्थी ज्ञानार्जन हेतु आते थे। जहाँ एक ओर नालंदा महाविहार बौद्ध धर्म की महायान शाखा का प्रसिद्ध केन्द्र बनकर उभरा, वहीं विक्रमशिला महाविहार तांत्रिक-विद्या तथा वज्रयान बौद्धमत के प्रचार का प्रमुख केन्द्र बना। कुमारगुप्त प्रथम द्वारा स्थापित नालन्दा विश्वविद्यालय तथा धर्मपाल द्वारा स्थापित विक्रमशिला विश्वविद्यालय प्राचीनकाल में कई शताब्दियों तक ज्ञान-विज्ञान के अतिमहत्वपूर्ण केन्द्र रहे ।2

Pages: 542-544  |  124 Views  51 Downloads


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How to cite this article:
रवि शंकर और दीपक शर्मा. प्राचीनकालीन नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय में ज्ञान परंपरा और बौद्ध धर्म का प्रभाव: एक ऐतिहासिक अध्ययन. Int J Appl Res 2025;11(5):542-544.
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