Vol. 1, Issue 1, Part E (2014)
अà¤à¤¿à¤¨à¤µà¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ का रस-सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤
अà¤à¤¿à¤¨à¤µà¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ का रस-सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤
Author(s)
डॉ. अशोक कà¥à¤®à¤¾à¤° दà¥à¤¬à¥‡
Abstractà¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ रस-चिनà¥à¤¤à¤¨ की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ में आचारà¥à¤¯ अà¤à¤¿à¤¨à¤µà¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है। जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ में अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿-वाद की वà¥à¤¯à¤¾à¤–à¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करते हà¥à¤ उसे वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• सà¥à¤µà¤°à¥‚प पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया है। वसà¥à¤¤à¥à¤¤à¤ƒ रस शबà¥à¤¦ का बीजारोपण वेद से हà¥à¤† है। वहां रस के लिठसà¥à¤µà¤¾à¤¦à¥, मधà¥, पान आदि का वाकॠऔर रूदà¥à¤° के लिठपà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया गया है।
अà¤à¤¿à¤¨à¤µà¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ रस को अलौकिक सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° किये हैं और इसकी अलौकिकता की सिदà¥à¤§à¤¿ à¤à¥€ करते हैं। लोक में पायी जाने वाली वसà¥à¤¤à¥ दो पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की होती है-à¤à¤• कारà¥à¤¯à¤°à¥‚प, दूसरा जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥à¤¯à¤°à¥‚प। रस लौकिक वसà¥à¤¤à¥ से परे कोई अलौकिक ततà¥à¤µ ही है-
‘‘अलौकिक चमतà¥à¤•à¤¾à¤°à¥€ शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गारिको रसः।’’
How to cite this article:
डॉ. अशोक कà¥à¤®à¤¾à¤° दà¥à¤¬à¥‡. अà¤à¤¿à¤¨à¤µà¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ का रस-सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤. Int J Appl Res 2014;1(1):421-424.