Vol. 1, Issue 7, Part N (2015)
हिन्दी उपन्यासों में जीवन-मूल्य, धर्म-संस्कृति, मनोविज्ञान, प्रेमयुग-चेतना, नैतिकता, स्त्री-पुरूष-सम्बन्ध, अस्तित्ववादी चिन्तन विषयों पर केन्द्रित चिन्तन
हिन्दी उपन्यासों में जीवन-मूल्य, धर्म-संस्कृति, मनोविज्ञान, प्रेमयुग-चेतना, नैतिकता, स्त्री-पुरूष-सम्बन्ध, अस्तित्ववादी चिन्तन विषयों पर केन्द्रित चिन्तन
Author(s)
डॉ. ममता रानी अग्रवाल
Abstract
किस्सागोई और सोदेश्यता के कारक हिन्दी उपन्यासों को स्थिरता देने में बड़े सहायक सिद्ध हुए,परन्तु आदर्श, मर्यादा और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के उद्देश्य से लिखे जाने वाले उपन्यासों की धारा बहुत दूर तक नहीं चली और पश्चिमी विचारक, जैसे कार्ल मार्क्स, फ्रायड, जॉय पॉल सार्त्र, अल्वेयर कामू आदि की सनसनीखेज विचार प्रणालियों से विश्वभर के साहित्य की विभिन्न विधाओं पर स्थायी रूप से पड़ा| अंतर्जगत के अध्ययन में विकसित मनोविज्ञान के प्रभाव के कारण उपन्यासों में बहिर्गत यथार्थ की जगह अतियथार्थ को रूपायित किया जाने लगा| परम्परागत नैतिक विधान तथा यौन-वर्जनाओं की असरता साबित हो जाने की वजह से अवचेतन मन में दबकर सुलगती हुई कुंठाओं का खुलकर चित्रण किया जाने लगा| यहाँ तक आते-आते हिन्दी उपन्यास की आन्तरिक धारा ही बदल जाती है| यहाँ हिन्दी उपन्यास एक स्तर पर समकालीन जीवन के व्यापक विस्तार को समेटता है, तो दूसरे स्तर पर, पहले से सर्वथा अलग सामाजिक और वैयक्तिक जीवन को गहराई के आयाम में चित्रित करता है, जिसमें जीवन के विविध एवं उसके आस-पास के परिवेश एवं उसके सम्बन्धों को चित्रित करने का प्रयास मिलता है| इस क्रम में थोड़ी भावुक आदर्शवादिता अथवा रोमांटिक दृष्टिकोण के बजाय वैयक्तिक ईमानदारी और निर्मम यथार्थपरकता का आग्रह बढ़ता है| हिन्दी उपन्यास ने आन्तरिकता को पकड़ने के प्रयास में घटनात्मकता, कथा-चरित्रों की उपेक्षा करते हुए संवेदना के मूल रूप को उसकी यथार्थता में अंकित करने का प्रयत्न किया है|
How to cite this article:
डॉ. ममता रानी अग्रवाल. हिन्दी उपन्यासों में जीवन-मूल्य, धर्म-संस्कृति, मनोविज्ञान, प्रेमयुग-चेतना, नैतिकता, स्त्री-पुरूष-सम्बन्ध, अस्तित्ववादी चिन्तन विषयों पर केन्द्रित चिन्तन. Int J Appl Res 2015;1(7):840-843.